Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

उजाड़ कुछ भी नहीं होता

 

मेरी बंद पड़ी कलम आज कुछ लिखना छाती हे
और वो स्याही मिल गई हे तेरे एहसासों में
जो कुछ अरसे से सूख गई थी
अब ये शब्द एक लंबा सफ़र तय करना चाहते हे
वहां तक जहाँ तुम हो
मेरी आत्मा में जो कम्पन हो रहा हे
उसमे से कुछ ध्वनियाँ निकलना चाह रही हे
छितिज से दूर फेलकर
समस्त कायनात में ये सन्देश देने
की
उजाड़ कुछ भी नहीं होता
कभी भी कही भी अनायास ही
शीशियो में बंद पड़े शब्द उभर ही आते हे
और होसलो से बंद पड़ी राहे
भी
स्वय ही खुल जाती हे

 

अंकिता पंवार

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ