Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जिन्दगी से आज मेरी जंग है

 

क्या नहीं तुझको दिया है जिन्दगी
रात- दिन की है तुम्हारी बंदगी,
ले सभी से वैर भी तुझको सँवारा
राह में आये कोई न था गवारा।
आज जग वैरी न तू भी संग है
जिन्दगी से आज मेरी जंग है।

आँख से जग की बहुत मैं गिर गया
वासना के जाल में भी घिर गया,
मैं समझता था कि तू मेरी सदा
देखकर लुटता रहा तेरी अदा।
जग समझ पाया न तेरा रंग है,
जिन्दगी से आज मेरी जंग है।

मैं पड़ा हूँ खाट पर जर्जर बदन
ले ह्रदय में जी रहा दारुण जलन,
वक्त पर मुझसे किया तू वैर है
जैसे कि अपना नहीं अब गैर है।
अब न मेरे साथ मेरा अंग है,
जिन्दगी से आज मेरी जंग है।

गिर रहे आँसू नयन से छूटकर
अब बिखरता जा रहा हूँ टूटकर,
मैं जिसे समझा कि मेरा प्यार है
त्याग कर मुझको वही निर्भार है।
आज तुम मेरे बदन से तंग है,
जिन्दगी से आज मेरी जंग है।

दे न इतना अश्क की भर जाऊँ मैं


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