सस्य-श्यामला भारत-भूमि
(गौरवमयी नायिका के रूप में)
वह उठती है पहाड़ों से —
हिम से ढकी मस्तक-जुड़ी चोटी,
हिमाचल उसकी शांत दृष्टि है,
जहाँ देवताओं ने साधना की थाती बाँधी।
उसकी आँखें हैं कश्मीर —
नीली, गहरी, चिनार-सी,
जहाँ झीलों में झाँकती है आत्मा,
और हर सांस में बसता है कोई सूफी गीत।
उत्तराखंड उसका ललाट है —
जहाँ गंगा की बिंदियाँ चमकती हैं,
केदारनाथ के स्पर्श से पावन
और युगों का तप रचा गया मौन।
सिक्किम उसके बालों में जड़े फूल —
बर्फ से दमकते, शांत, सुवासित,
गुरुदोंगमार की झील में
उसकी अलौकिकता झलकती है।
अरुणाचल उसकी पहली दृष्टि —
सूरज की पहली किरण-सी,
उसके होंठों पर उगती प्रार्थना
और जंगलों में गूंजता मंत्र।
मेघालय उसके केश —
झरनों की तरह खुलते और गूंजते,
खासी परंपराओं में वह
बादलों से बात करती है।
मणिपुर उसकी आँखों का काजल —
जिसमें रासलीला की कोमलता है,
हर मुद्रा, हर भाव में
वह खुद को देवी मानती है।
नगालैंड उसका साहस —
पर्वत-सा अडिग, अग्नि-सा जीवंत,
हॉर्नबिल के पंखों से
वह आत्मसम्मान ओढ़े चलती है।
मिज़ोरम उसकी मुस्कान —
बाँस की हर थिरकन में
वह प्रेम और प्रकृति का समन्वय रचती है।
त्रिपुरा उसका कोमल स्वर —
देवी त्रिपुर सुंदरी की साधना से
वह शक्ति और भक्ति दोनों बनती है।
असम उसकी साँस है —
जो ब्रह्मपुत्र की तरह बहती है,
बीहू की थाप पर हँसती है,
और रेशमी सपनों से तन जाती है।
दिल्ली उसका तेज —
जिससे संकल्प बनते हैं,
शब्द विधान होते हैं,
और कालचक्र की धुरी घूमती है।
उत्तर प्रदेश उसकी आत्मा है —
राम की मर्यादा, कृष्ण की लीला,
तुलसी की चौपाइयाँ और कबीर की उलटबाँसियाँ
उसके मन में गूंजती रहती हैं।
बिहार उसकी स्मृति है —
नालंदा की दीवारों पर उकेरी हुई,
बुद्ध की मौन वाणी और लोकगीतों की गूँज
एक साथ बहती हैं उसकी नसों में।
हरियाणा उसकी बाहें हैं —
मज़बूत, जुझारू, मिट्टी से लिपटी हुई,
जहाँ पहलवानों के पसीने में
जननी का दूध झलकता है।
पंजाब उसका वक्ष —
जहाँ अन्न की गंध से भरता है आकाश,
गुरुबाणी के स्वर उसकी धड़कनों में हैं
और भांगड़ा की थाप में जीवन की जिजीविषा।
राजस्थान उसकी कमर पर बंधा आँचल —
घाघरे-सी फैली मरुभूमि,
रेगिस्तान में भी पग-पग पर मोती,
लोक-कथाओं में जलते हैं दीप शौर्य और प्रेम के।
गुजरात उसकी मुस्कान है —
गरबा की ताल पर थिरकती हुई,
साबरमती के जल में दर्पण खोजती,
और गांधी की वाणी में शांति बोती।
मध्य प्रदेश उसका हृदय है —
पाषाणों की भाषा जानता है,
भीमबैठका से निकलते चित्रों में
मनुष्य की आदि-कथा अंकित है।
झारखंड उसकी देह की मिट्टी —
जिसमें आदिवासी भावनाओं की गंध है,
सरहुल और करमा की पूजा से
वह हर ऋतु को गीत बना देती है।
छत्तीसगढ़ उसकी पदवंदना है —
जो पथरीली ज़मीन को भी नाच बनाती है,
पंडवानी के स्वर में
वह वीर कथा को जीवन देती है।
ओडिशा उसका गर्भ है —
जहाँ रथ चलता है जगन्नाथ का,
और छऊ नृत्य की मुद्राओं में
उसे सृष्टि का रहस्य मिलता है।
पश्चिम बंगाल उसकी वाणी —
माँ दुर्गा की हुंकार से गूँजती,
रवींद्र की रचना में नर्म हो जाती,
बाऊल के स्वरों में तैरती है वह।
महाराष्ट्र उसकी दृढ़ ठोड़ी —
जिस पर शिवराय की छाया है,
लावणी की लय और तुकाराम की वाणी
उसे निर्भय बनाती है।
गोवा उसकी चंचल पायल —
जिसमें समंदर की लहरों की झंकार है,
और हर त्योहार, हर चर्च
उसके रंगों में डूबा रहता है।
कर्नाटक उसका कंठ —
जहाँ संस्कृत और कन्नड़ का संयोग है,
यक्षगान और हम्पी की स्मृति
उसकी बोली को आदिकाव्य बना देती है।
तेलंगाना उसकी नव्य दृष्टि —
चारमीनार की गहराई से चमकती,
बोनालु की शक्ति में वह
अपने नारीत्व को पाती है।
आंध्रप्रदेश उसकी बाँहों का आलिंगन —
कुचिपुड़ी की अंगुलियों से
वह पूरी पृथ्वी को थाम लेना चाहती है।
तमिलनाडु उसकी जड़ें —
संगम-युग से गहरे जुड़ी,
भरतनाट्यम की मुद्राओं से
वह अनंत काल को नृत्य में बाँधती है।
केरल उसका अंतरंग सौंदर्य —
नारियल की छाँव, आयुर्वेद की शांति,
कथकली के रंगों में
वह देवता बन बैठती है।
लक्षद्वीप और अंडमान उसके कानों के कर्णफूल —
नील जल की झंकार में चमकते,
हर द्वीप एक मोती,
जो उसे पूर्णता का सौंदर्य देते हैं।
तू केवल राष्ट्र नहीं—
सप्तसिंधु की धड़कती नायिका है।
तेरे अंग-अंग में इतिहास की गूँज है,
तेरे हर भाव में संस्कृति की उजास।
तू ऋषियों की धूप में तपती साधना,
वीरों के रक्त से रची जय-गाथा,
तू नारी की आँखों की करुणा,
और वट-वृक्ष की चुपचाप छाया है।
तू पर्वतों की चोटी पर उठती
शब्दहीन प्रार्थना है,
नदियों की लहरों में
बहती वंदना की सरगम।
तू खेतों की हरियाली में
पसीने की मिठास है,
लोकगीतों में धड़कती
हर धुन की आस है।
भारत-भूमि!
तू नायिका नहीं—
संपूर्ण रचना है।
तेरे रोम-रोम में
गूंजता है लोक,
तेरे कदमों में
उगते हैं त्योहार,
तेरे मौन में
दबी पड़ी सभ्यता की कथा है।
और जब तू मुस्कराती है—
किसी किसान के चेहरे पर,
या किसी लोकगीत की
बिखरी पंक्तियों में,
तो सारी दुनिया
तेरी गोदी में
साँस लेने को बेताब हो उठती है।
तू सिर्फ मिट्टी नहीं—
एक जीवित महाकाव्य है।
हर प्रदेश तेरा एक पद,
हर बोली तेरा एक अलंकार,
हर जन—
तेरे अंतर की अनकही पीर और उत्सव है।
©® अमरेश सिंह भदौरिया
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