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तुम्हारा प्रेम

 

तुम्हारा प्रेम

तुम्हारा प्रेम केवल एक अनुभव नहीं,
वह तो चेतना की किसी अतल गहराई में
जगा हुआ वह स्पंदन है
जो जीवन और मृत्यु के बीच
शाश्वत संवाद रचता है।

यह कोई संयोग नहीं,
जो संधियों और संकल्पों से बंधा हो,
यह तो वह अनाम अनुबंध है
जिसे आत्माएं बिना भाषा के
कर्म और स्मृति में निभाती हैं।

तुम्हारा प्रेम —
अदृश्य किन्तु सर्वत्र व्यापी,
जैसे वायु में घुला हुआ कोई ऋग्वैदिक मंत्र,
जो सुनाई तो नहीं देता,
पर आत्मा में हर पल गूंजता रहता है।

तुम्हारा प्रेम वह ध्वनि है
जो मौन से जन्म लेती है,
वह दीपशिखा है
जो अंधकार से प्रेम करती है।

तुम्हारा प्रेम…
कोई चरम नहीं, कोई प्रारंभ भी नहीं —
यह कालजयी यात्रा है
जहाँ साथ होना नहीं,
सार्थक होना महत्त्वपूर्ण है।

©® अमरेश सिंह भदौरिया





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