नई सदी के अनुत्तरित सवाल
नवयुग की चौखट पर खड़े,
हमने रौशनी की लौ थामी,
पर अंधेरों की शक्लें बदलीं,
और सवाल वहीं रह गए –
अनुत्तरित।
प्रगति की पटरी पर दौड़ते
रोबोटिक मुस्कानों में
कहाँ छिप गई वह आत्मा
जो कभी संवेदना से चिपकी थी?
डिजिटल स्पर्श ने
क्या मिटा दी है उंगलियों की ऊष्मा?
या आत्मीयता अब
केवल इमोजी तक सिमट गई?
शब्द हैं—
पर संवाद गुम है,
मंच हैं—
पर मक़सद झूठा,
शिक्षा है—
पर विवेक कहाँ?
क्यों आज भी
कुपोषण के आँकड़े
चमचमाते मॉलों के साए में
सिसकते हैं?
क्यों विज्ञान के शिखर पर बैठा मन
अब भी
धर्म, जाति और लालच के
पिंजरे में कैद है?
नई सदी के ये सवाल
अब भी टकटकी लगाए
झाँक रहे हैं हमारी आँखों में—
उत्तर की प्रतीक्षा में,
जिसे हम भूलने का अभिनय कर रहे हैं।
©®अमरेश सिंह भदौरिया
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