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Dr. Srimati Tara Singh
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मदर्स डे

 

मदर्स डे

जब ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई, तो सृजनकर्ता ब्रह्मा ने सृष्टि को संवारने के लिए अनेक रूप रचे। देव, असुर, गंधर्व, यक्ष, किन्नर, मानव — सब अस्तित्व में आए। परंतु जब उसने देखा कि हर जीव अपनी सुरक्षा, पोषण और संवेदना के लिए किसी शक्ति की तलाश में है, तो ब्रह्मा ने अपनी करुणा से एक विशेष रूप की रचना की, जिसे ‘माँ’ कहा गया।

माँ केवल एक देह नहीं है, वह सृजन की आदि शक्ति है। यही कारण है कि भारतीय पौराणिक साहित्य में माता को देवी का स्वरूप कहा गया है। चाहे वह आद्या शक्ति सती हों, जिन्होंने अपने पिता दक्ष के अपमान के विरोध में प्राण त्याग दिए, या पार्वती, जिन्होंने शिव को पाने के लिए कठोर तप किया और सृष्टि की कल्याणी बनीं। माँ सदा त्याग, प्रेम और शक्ति की जीवंत मिसाल रही है।

पुराणों में एक सुंदर प्रसंग आता है — एक बार कैलाश पर्वत पर माता पार्वती और भगवान शिव के बीच भोजन को लेकर विवाद हुआ। शिव ने संसार को माया और मोह कहकर भोजन को तुच्छ बताया। तब माता ने सृष्टि से भोजन अदृश्य कर दिया। समस्त प्राणी भूख से व्याकुल हो उठे। जब भगवान शिव ने भी भूख का कष्ट अनुभव किया, तो पार्वती ने अन्नपूर्णा रूप धारण कर काशी में अन्न दान आरंभ किया। शिव स्वयं भिक्षुक बनकर माता के द्वार पर पहुँचे।

इस कथा से यह सिद्ध होता है कि माँ केवल जननी नहीं, पालनहार भी है। उसकी ममता से ही सृष्टि में प्राण है। भोजन, सुरक्षा, और ममता का पहला स्रोत माँ ही है।

रामायण में माता कौशल्या और महाभारत व भागवत पुराण में यशोदा मैया का उदाहरण माँ के उस रूप का है, जो अपने पुत्र के कष्ट को स्वयं सह लेती है। यशोदा ने कृष्ण को अपने हृदय में छुपाकर उनकी बाल लीलाओं का आनंद उठाया, बिना यह जाने कि वे स्वयं विष्णु के अवतार हैं। माँ का प्रेम बिना शर्त होता है — उसे न पद चाहिए, न पहचान। वह बस अपने बच्चे का सुख चाहती है।

भारतीय संस्कृति में धरणी (पृथ्वी) को भी माँ कहा गया है। वह सहनशीलता और पोषण का प्रतीक है। गाय को माता कहा गया, क्योंकि वह नि:स्वार्थ पोषण करती है। नदी को भी माँ कहा गया, क्योंकि वह जीवनदायिनी है।

इससे सिद्ध होता है कि 'माँ' केवल जन्म देने वाली नहीं, बल्कि जीवन संवारने वाली, दुख हरने वाली और शक्ति देने वाली सत्ता है।

आज जबकि आधुनिक जीवन की आपाधापी में लोग अपनी जड़ों और रिश्तों से कटते जा रहे हैं, माँ का महत्व और भी बढ़ गया है। मदर्स डे जैसे दिवस हमें यह स्मरण कराते हैं कि जिसे हम सामान्य मान बैठे हैं, वह वास्तव में हमारी दुनिया की नींव है।

माँ का प्रेम न उम्र देखता है, न स्थिति। वह हर हाल में अपने बच्चे के लिए दुआ करती है, उसकी पीड़ा को अपने हिस्से में लेती है। उसके आँचल की छाया में ही जीवन की सबसे सच्ची शांति मिलती है।

भारतीय पौराणिक आख्यानों और सांस्कृतिक परंपरा में माँ का स्थान सर्वोपरि रहा है। वह सृष्टि की प्रथम शिक्षिका, प्रथम मित्र और प्रथम शक्ति है।

हमें चाहिए कि हम केवल मदर्स डे तक सीमित न रहें, बल्कि हर दिन माँ की ममता को स्मरण करें, उसका आदर करें और उसकी सेवा को अपना कर्तव्य मानें।

क्योंकि —
"धरती पर भगवान का रूप है माँ,
जो देखे बिना बोले सब जान जाती है।"

—अमरेश सिंह भदौरिया





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