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इक्कीसवीं सदी

 

इक्कीसवीं सदी

यह
इक्कीसवीं सदी है—
जहाँ स्पर्श मोबाइल में है
और संवेदना नेटवर्क में फँसी हुई।

यहाँ रिश्ते
कमेंट बॉक्स में पलते हैं
और मन
इनबॉक्स में सूखता जाता है।

यहाँ बच्चे
गूगल से सवाल पूछते हैं,
और माँ-बाप
वॉट्सऐप से संस्कार बाँटते हैं।

ज्ञान
अब अनुभव से नहीं,
रील और शॉर्ट्स से मापा जाता है,
जहाँ 'देखा है' का अर्थ
'समझा है' नहीं होता।

यहाँ
मंदिर, मस्जिद और संसद
सभी में शोर है,
पर आत्मा के भीतर
एक भयावह चुप्पी पसरी है।

सदी की शुरुआत
उम्मीदों से हुई थी,
पर अब
आशंका की आँधियों में
सपनों के वृक्ष झुकने लगे हैं।

हमने
चाँद पर झंडा गाड़ दिया,
लेकिन ज़मीन पर
इंसानियत का चेहरा धुंधला हो गया।

©® अमरेश सिंह भदौरिया

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