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Dr. Srimati Tara Singh
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देह का भूगोल

 

देह का भूगोल

(स्त्री-सौंदर्य का सांस्कृतिक मानचित्र)

तुम्हारी काया
जैसे कोई संस्कृति से सजी हुई धरती,
जहाँ सौंदर्य की ऋतुएँ
मौन में भी संगीत रचती हैं,
और प्रत्येक अंग
किसी अर्थवान प्रतीक की तरह
अपनी उपस्थिति दर्ज कराता है।

ललाट—
जैसे निःशब्द आकाश,
जहाँ मांग की सिन्दूरी रेखा
प्रभात की पहली लाली बनकर चमकती है।

केश—
कभी अंधकार में डूबा हुआ,
तो कभी चाँदनी से सराबोर—
कल्पना की सघन वनराशि।

दृष्टि—
निर्झरिणी सी बहती,
कभी मौन, कभी मुखर—
जैसे आत्मा को संबोधित करती कोई भाषा।

ओष्ठ—
कमल-दल पर पड़ी पहली बूँद की तरह कोमल,
जहाँ शब्द नहीं,
भाव जन्म लेते हैं।

कंठ-प्रदेश—
वाणी का उपवन,
जहाँ स्वर-पुष्प खिलते हैं
और मौन भी अपना अर्थ पाता है।

बाहुएँ—
स्नेह का विस्तार,
जिनके घेरे में
सम्पूर्ण सृष्टि विश्राम पा सकती है।

हृदय—
संवेदना का केन्द्र,
जहाँ भावनाएँ सहज लय में धड़कती हैं
जैसे कोई पुरातन वीणा।

ग्रीवा और कटि—
तरंगित सरिता की तरह लहराती रेखाएँ,
जिनमें सौंदर्य
नाद बनकर बहता है।

जंघाएँ और चरण—
धरा की शुद्धता से जुड़े,
संकल्प की दृढ़ता और सृजन की सहनशीलता लिए हुए।

संपूर्ण काया—
नारीत्व का एक अनकहा काव्य,
जहाँ नाद, रूप, रस और रीति—
सब एक साथ गूँजते हैं।

और इसलिए...

स्त्री की देह को केवल रूप से मत तौलो,
वह एक संवेदनशील सभ्यता की मूर्त रचना है,
जहाँ हर अंग
किसी आदिम गीत का स्वर है,
और हर रेखा
किसी प्राचीन मंत्र की ध्वनि।

©®अमरेश सिंह भदौरिया




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