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Dr. Srimati Tara Singh
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बुद्ध पूर्णिमा

 

बुद्ध पूर्णिमा : शून्य और करुणा का संगम

बुद्ध पूर्णिमा, एक ऐसा पावन अवसर है, जो हमें न केवल भगवान बुद्ध के जन्म, ज्ञान प्राप्ति और महापरिनिर्वाण की स्मृति दिलाता है, बल्कि बौद्ध दर्शन के उन गहन आध्यात्मिक सत्यों से भी जोड़ता है, जो मानव अस्तित्व की जटिलताओं को समझने और परम शांति की ओर बढ़ने का मार्ग प्रशस्त करते हैं। इस वर्ष, जब हम यह पवित्र दिवस मना रहे हैं, तो आइए, हम इन शाश्वत सिद्धांतों पर गहराई से विचार करें और देखें कि वे आज के अशांत विश्व में किस प्रकार प्रासंगिक हैं।

बौद्ध धर्म के दो आधारभूत स्तंभ — शून्यता और अनत्ता — हमें वास्तविकता की एक क्रांतिकारी समझ प्रदान करते हैं। शून्यता का अर्थ यह नहीं है कि कुछ भी अस्तित्व में नहीं है, बल्कि यह इंगित करता है कि सभी चीज़ें स्वभावतः रिक्त हैं, किसी भी स्थायी या स्वतंत्र अस्तित्व से रहित हैं। हमारी पहचान, हमारे विचार, हमारी भावनाएँ — सब कुछ क्षणिक है, अन्योन्याश्रित है और लगातार परिवर्तनशील परिस्थितियों पर निर्भर है। बुद्ध पूर्णिमा हमें इस अस्थिरता पर मनन करने का अवसर देती है, जिससे हमारी आसक्ति कम होती है और मुक्ति का मार्ग खुलता है।

इसी प्रकार, अनत्ता का सिद्धांत, जो ‘अनात्मा’ या ‘स्व-शून्यता’ की बात करता है, हमारे 'मैं' और 'मेरा' के भ्रम को चुनौती देता है। हम पाँच क्षणिक स्कंधों का एक अस्थायी संयोजन हैं, न कि कोई स्थायी आत्मा या स्व। इस सत्य की गहरी समझ अहंकार को कम करती है और दूसरों के साथ हमारे अंतर्संबंध की भावना को बढ़ाती है। बुद्ध पूर्णिमा के दिन किए जाने वाले ध्यान और जागरूकता के अभ्यास हमें इन गहन सत्यों का प्रत्यक्ष अनुभव करने में सहायक हो सकते हैं।

कर्म और पुनर्जन्म का चक्र हमें हमारे कार्यों की जिम्मेदारी का बोध कराता है। हमारे विचार, शब्द और कर्म भविष्य के अनुभवों को आकार देते हैं। बुद्ध पूर्णिमा हमें अपने कर्मों पर विचार करने और यह समझने के लिए प्रेरित करती है कि हमारे वर्तमान सुख-दुख हमारे अतीत के कर्मों का परिणाम हैं तथा हमारे वर्तमान कर्म ही भविष्य को निर्धारित करेंगे। यह हमें अधिक नैतिक और जागरूक जीवन जीने के लिए प्रेरित करता है, जिससे हम दुखों के इस चक्र से मुक्त हो सकें।

महायान बौद्ध धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है — बोधिचित्त का विकास। इसका अर्थ है, सभी प्राणियों को दुखों से मुक्त कराने के लिए बुद्धत्व प्राप्त करने की प्रबल इच्छा। बुद्ध पूर्णिमा हमें इस असीम करुणा और परोपकार की भावना को पोषित करने का आह्वान करती है। बुद्ध ने स्वयं अनगिनत जन्मों तक दूसरों की सेवा की और अंततः बुद्धत्व प्राप्त किया। बोधिचित्त का अभ्यास हमारे स्वार्थी विचारों को कम करता है और हमें दूसरों के कल्याण के लिए समर्पित जीवन जीने की दिशा में प्रेरित करता है।

यह पवित्र दिन हमें उन अनगिनत आध्यात्मिक गुरुओं और चिकित्सकों की भी याद दिलाता है, जिन्होंने बुद्ध की शिक्षाओं की ज्योति को पीढ़ी दर पीढ़ी प्रज्वलित रखा है। आध्यात्मिक मार्ग पर एक योग्य गुरु का मार्गदर्शन एक अमूल्य निधि है। बुद्ध पूर्णिमा हमें अपने गुरुओं के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने और उनकी शिक्षाओं का पालन करने का संकल्प लेने का अवसर प्रदान करती है।

आज के तनावग्रस्त और प्रतिस्पर्धात्मक विश्व में, बुद्ध पूर्णिमा का आध्यात्मिक संदेश पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। यह हमें सिखाती है कि सच्ची खुशी बाहरी उपलब्धियों या भौतिक संपत्ति में नहीं, बल्कि आंतरिक शांति और दूसरों के साथ सद्भाव में निहित है। बुद्ध की शिक्षाएँ हमें क्रोध, लोभ और अज्ञान जैसी नकारात्मक भावनाओं पर विजय प्राप्त करने, धैर्य और सहिष्णुता विकसित करने, तथा सभी के प्रति करुणा और प्रेम का अभ्यास करने का मार्ग दिखाती हैं।

बुद्ध पूर्णिमा हमें उपभोक्तावाद और भौतिकवाद की अंधी दौड़ से क्षण भर रुककर अपने आंतरिक मूल्यों पर विचार करने का अवसर देती है। यह हमें याद दिलाती है कि एक सरल, नैतिक और जागरूक जीवन जीना ही अधिक संतोषजनक और टिकाऊ है।

निष्कर्षतः, बुद्ध पूर्णिमा केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह मानव अस्तित्व की गहरी सच्चाइयों और मुक्ति के मार्ग पर एक गहन चिंतन का अवसर है। यह हमें शून्यता, अनत्ता, कर्म और करुणा जैसे महत्वपूर्ण बौद्ध सिद्धांतों पर मनन करने के लिए प्रेरित करती है। यह हमें ध्यान और जागरूकता के अभ्यास को महत्व देने, नैतिक जीवन जीने और सभी प्राणियों के प्रति करुणा विकसित करने का आह्वान करती है। बुद्ध पूर्णिमा हमें अपनी आध्यात्मिक यात्रा को गहरा करने, अपने आंतरिक बंधनों को तोड़ने और अंततः परम शांति व ज्ञान की ओर बढ़ने का एक सशक्त अवसर प्रदान करती है।

यह दिन हमें यह भी स्मरण कराता है कि बुद्धत्व की संभावना प्रत्येक व्यक्ति में निहित है, और सही प्रयास व समझ से हम सभी उस परम जागृति को प्राप्त कर सकते हैं। आइए, इस पावन दिन हम सब मिलकर उस आंतरिक शांति और करुणा को जगाने का संकल्प लें, जो बुद्ध की शिक्षाओं का सार है।

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