Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

अवसरवादी

 

अवसरवादी

वो
हर मौसम में रंग बदलता है—
जैसे ग्रीष्म में पेड़ की छाया,
जो धूप से नहीं,
धूप में खड़े से जुड़ी होती है।

उसकी अंतरात्मा नहीं होती,
केवल एक कैलेंडर होता है
जिसमें तारीखें नहीं,
अवसर दर्ज होते हैं।

वो
कभी मोम होता है,
कभी पत्थर—
कभी हाथ जोड़ता है,
तो कभी पीठ में छुरा रखता है।

सिद्धांत उसके लिए
सिर्फ़ शब्दकोश का बोझ हैं,
उसके जीवन में
सिर्फ़ “फायदा” सही और “नुकसान” ग़लत है।

वो वहां नहीं होता
जहाँ संघर्ष होता है,
पर वहाँ ज़रूर दिखता है
जहाँ विजय-ध्वज लहराया जाता है।

उसकी मुस्कान में
चालाकी की दरारें हैं,
और उसकी चुप्पी
एक अगली योजना की भूमिका।

पर ध्यान रहे—
वक़्त सबसे बड़ा दर्पण है,
जिसमें
हर अवसरवादी का चेहरा
कभी न कभी
बेपरदा हो ही जाता है।

©®अमरेश सिंह भदौरिया

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ