Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

अमरेश सिंह भदौरिया

 

हिंदी पत्रकारिता दिवस: एक ऐतिहासिक यात्रा और वर्तमान चुनौतियाँ

आज 30 मई, हिंदी पत्रकारिता दिवस है। यह दिन उस ऐतिहासिक क्षण का स्मरण कराता है जब 1826 में पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने 'उदन्त मार्तण्ड' नामक पहला हिंदी समाचार पत्र प्रकाशित किया था। यह मात्र एक समाचार पत्र का प्रकाशन नहीं था, बल्कि यह हिंदी भाषा के माध्यम से जन-जागरण, सामाजिक सुधार और राष्ट्रीय चेतना के सूत्रपात का प्रतीक था। 'उदन्त मार्तण्ड' ने हिंदी पत्रकारिता की नींव रखी, जिस पर चलकर आज यह विशाल वटवृक्ष खड़ा है। इस अवसर पर, आइए हिंदी पत्रकारिता की लंबी और गौरवपूर्ण यात्रा, उसके योगदानों और वर्तमान चुनौतियों पर एक विस्तृत दृष्टि डालें।

उद्भव और विकास: शुरुआती दौर

'उदन्त मार्तण्ड' का प्रकाशन कलकत्ता (अब कोलकाता) से हुआ था। उस समय हिंदी भाषी क्षेत्रों में समाचारों के अभाव को देखते हुए जुगल किशोर शुक्ल ने यह साहस भरा कदम उठाया। 'उदन्त मार्तण्ड' साप्ताहिक पत्र था और इसमें मुख्य रूप से सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक विषयों पर लेख प्रकाशित होते थे। इसकी भाषा ठेठ हिंदी थी, जो आम जनता के लिए सुलभ थी। हालाँकि, आर्थिक कठिनाइयों और पर्याप्त पाठकों के अभाव के कारण 'उदन्त मार्तण्ड' अधिक समय तक नहीं चल पाया, लेकिन इसने हिंदी पत्रकारिता के लिए एक महत्वपूर्ण मार्ग प्रशस्त किया।

इसके बाद, 19वीं सदी के मध्य में, हिंदी पत्रकारिता ने धीरे-धीरे गति पकड़ी। राजा शिवप्रसाद 'सितारेहिंद' और भारतेंदु हरिश्चंद्र जैसे दिग्गजों ने इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारतेंदु हरिश्चंद्र को तो 'हिंदी पत्रकारिता का जनक' भी कहा जाता है। उन्होंने 'कवि वचन सुधा', 'हरिश्चंद्र मैगजीन' (बाद में 'हरिश्चंद्र चंद्रिका') और 'बालबोधिनी' जैसे पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया। इन पत्रों ने न केवल साहित्य और भाषा के विकास में योगदान दिया, बल्कि सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार किया और राष्ट्रीय भावना को जगाया। भारतेंदु युग में पत्रकारिता एक मिशन थी, जिसका उद्देश्य समाज को शिक्षित करना, अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना और स्वतंत्रता संग्राम की अलख जगाना था।

स्वतंत्रता संग्राम में हिंदी पत्रकारिता का योगदान

20वीं सदी की शुरुआत होते-होते हिंदी पत्रकारिता स्वतंत्रता संग्राम का एक सशक्त माध्यम बन चुकी थी। महात्मा गांधी ने 'नवजीवन' और 'हरिजन' जैसे पत्रों के माध्यम से अपने विचारों का प्रचार किया। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का 'केसरी' (मराठी) और 'मराठा' (अंग्रेजी) के साथ-साथ हिंदी में भी उनके विचारों का प्रसार हुआ। गणेश शंकर विद्यार्थी का 'प्रताप', माखनलाल चतुर्वेदी का 'कर्मवीर', शिवपूजन सहाय का 'मतवाला' और प्रेमचंद की 'हंस' जैसी पत्रिकाएँ राष्ट्रीय आंदोलन की आवाज बन गईं। इन पत्रों ने ब्रिटिश हुकूमत की दमनकारी नीतियों का विरोध किया, देशभक्ति की भावना को प्रज्वलित किया और जनता को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

पत्रकारों ने अनेक बलिदान दिए। उन्हें जेल जाना पड़ा, उन पर मुकदमे चलाए गए और उनके पत्रों को जब्त किया गया। लेकिन इन सब बाधाओं के बावजूद, उन्होंने अपनी कलम की धार को कम नहीं होने दिया। उन्होंने जनमानस में स्वतंत्रता की लौ को जलाए रखा और देश को आजादी दिलाने में अपनी अहम भूमिका निभाई। इस दौर की पत्रकारिता ने पत्रकारिता के मूल्यों, नैतिकता और सामाजिक दायित्वों का एक उच्च मानदंड स्थापित किया।

स्वतंत्रता के बाद का दौर: पुनर्निर्माण और जन-जागरण

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हिंदी पत्रकारिता ने एक नए युग में प्रवेश किया। अब उसका मुख्य उद्देश्य राष्ट्र निर्माण, विकास के संदेश को जन-जन तक पहुँचाना, लोकतंत्र के प्रहरी के रूप में कार्य करना और सरकार की नीतियों पर रचनात्मक आलोचना करना था। इस दौर में 'धर्मयुग', 'साप्ताहिक हिंदुस्तान', 'सारिका', 'कादंबिनी' जैसी साहित्यिक और सामाजिक पत्रिकाओं का उदय हुआ। समाचार पत्रों में 'नवभारत टाइम्स', 'हिंदुस्तान', 'दैनिक जागरण', 'अमर उजाला', 'नई दुनिया' आदि ने अपनी पैठ बनाई और देश के कोने-कोने तक खबरें पहुँचाईं।

इस काल में पत्रकारिता ने पंचवर्षीय योजनाओं, हरित क्रांति, श्वेत क्रांति जैसे महत्वपूर्ण राष्ट्रीय अभियानों में अपनी भूमिका निभाई। इसने ग्रामीण विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे मुद्दों को उठाया और समाज के वंचित वर्गों की आवाज बनी। इस दौर में पत्रकारिता ने लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में अपनी भूमिका को सुदृढ़ किया।

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का आगमन और हिंदी पत्रकारिता

20वीं सदी के अंत और 21वीं सदी की शुरुआत में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के आगमन ने पत्रकारिता के परिदृश्य को पूरी तरह बदल दिया। दूरदर्शन के बाद, निजी समाचार चैनलों जैसे आजतक, ज़ी न्यूज़, एनडीटीवी इंडिया, इंडिया टीवी आदि ने हिंदी भाषी दर्शकों के बीच अपनी जगह बनाई। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की तात्कालिकता और दृश्य-श्रव्य माध्यम की शक्ति ने समाचारों के उपभोग के तरीके को बदल दिया।

शुरुआत में, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने हिंदी पत्रकारिता को एक नई गति दी। समाचार तुरंत उपलब्ध होने लगे और दर्शकों तक पहुँच का दायरा बढ़ गया। हालाँकि, इसने कुछ नई चुनौतियाँ भी खड़ी कीं, जैसे ब्रेकिंग न्यूज़ की होड़ में गुणवत्ता से समझौता, सनसनीखेज खबरें, और 'पेड न्यूज़' का मुद्दा।

डिजिटल क्रांति और हिंदी पत्रकारिता का नया अध्याय

वर्तमान में, हम डिजिटल क्रांति के युग में हैं। इंटरनेट और स्मार्टफोन की ubiquitous पहुँच ने हिंदी पत्रकारिता को एक बिल्कुल नया आयाम दिया है। आज हर प्रमुख समाचार पत्र और टीवी चैनल का अपना ऑनलाइन पोर्टल और ऐप है। इसके अलावा, वेब पोर्टल्स, ब्लॉग्स, पॉडकास्ट, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म आदि ने समाचारों के प्रसार को और भी विकेंद्रीकृत कर दिया है।

डिजिटल पत्रकारिता ने खबरों को वैश्विक बना दिया है और पाठकों/दर्शकों को असीमित जानकारी तक पहुँच प्रदान की है। यह इंटरैक्टिविटी प्रदान करती है, जहाँ पाठक टिप्पणी कर सकते हैं, लेख साझा कर सकते हैं और अपनी राय व्यक्त कर सकते हैं। यह नागरिक पत्रकारिता (Citizen Journalism) को भी बढ़ावा देती है, जहाँ आम लोग भी अपने आसपास की घटनाओं को रिकॉर्ड कर साझा कर सकते हैं।

हालाँकि, डिजिटल पत्रकारिता ने भी अपनी चुनौतियाँ लाई हैं। फेक न्यूज़ (नकली खबरें), दुष्प्रचार (Misinformation/Disinformation), ट्रोल्स, साइबर बुलिंग और गोपनीयता का हनन कुछ प्रमुख चिंताएँ हैं। डिजिटल प्लेटफॉर्म पर सत्यापन की कमी और सूचनाओं के अत्यधिक प्रवाह से सत्य और असत्य में भेद करना कठिन हो गया है। पत्रकारों के लिए अब यह और भी महत्वपूर्ण हो गया है कि वे सूचनाओं की सत्यता की पुष्टि करें और विश्वसनीय स्रोत बनें।

वर्तमान चुनौतियाँ और हिंदी पत्रकारिता का भविष्य

आज हिंदी पत्रकारिता अनेक चुनौतियों का सामना कर रही है, जो उसके अस्तित्व और विश्वसनीयता के लिए गंभीर प्रश्न खड़े करती हैं।

1. विश्वसनीयता का संकट: आजकल 'ब्रेकिंग न्यूज़' की होड़, सनसनीखेज प्रस्तुति, और कई बार बिना पुष्टि के खबरें चलाने के कारण पत्रकारिता की विश्वसनीयता पर सवाल उठने लगे हैं। सोशल मीडिया पर फैलने वाली अफवाहें और पेड न्यूज़ जैसे मुद्दे इस संकट को और गहरा करते हैं। जनता का विश्वास बनाए रखना हिंदी पत्रकारिता के लिए सबसे बड़ी चुनौती है।

2. आर्थिक दबाव और 'पेड न्यूज़': विज्ञापन राजस्व में कमी, विशेषकर प्रिंट मीडिया में, और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर बढ़ते प्रतिस्पर्धा के कारण आर्थिक दबाव बढ़ रहा है। यह दबाव कई बार संपादकीय स्वतंत्रता को प्रभावित करता है और 'पेड न्यूज़' जैसी अनैतिक प्रथाओं को जन्म देता है, जहाँ खबरें या लेख विज्ञापनों के रूप में प्रस्तुत किए जाते हैं।

3. सरकार और कॉर्पोरेट का दबाव: सरकार और बड़े कॉर्पोरेट घरानों का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष दबाव भी पत्रकारिता की निष्पक्षता को प्रभावित करता है। पत्रकारों को कई बार ऐसे मुद्दों पर रिपोर्टिंग करने से रोका जाता है जो सत्ता प्रतिष्ठान या बड़े व्यावसायिक हितों के खिलाफ होते हैं।

4. ध्रुवीकरण और पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग: समाज में बढ़ते ध्रुवीकरण का असर पत्रकारिता पर भी दिख रहा है। कई मीडिया हाउस किसी विशेष विचारधारा या राजनीतिक दल के पक्ष में रिपोर्टिंग करते हुए दिखाई देते हैं, जिससे निष्पक्षता और वस्तुनिष्ठता का हनन होता है। यह प्रवृत्ति जनता में अविश्वास पैदा करती है।

5. पत्रकार सुरक्षा: पत्रकारों पर हमले, धमकी और हिंसा की घटनाएँ लगातार बढ़ रही हैं, विशेषकर छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में। यह स्वतंत्र और निडर पत्रकारिता के लिए एक बड़ी बाधा है। पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करना अत्यंत आवश्यक है।

6. तकनीकी बदलावों के साथ तालमेल: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, डेटा पत्रकारिता और अन्य नई तकनीकों के साथ तालमेल बिठाना हिंदी पत्रकारिता के लिए महत्वपूर्ण है। इन तकनीकों का उपयोग करके खबरों की गुणवत्ता, पहुँच और प्रभाव को बढ़ाया जा सकता है, लेकिन इसके लिए कौशल विकास और निवेश की आवश्यकता है।

7. क्षेत्रीय पत्रकारिता का महत्व: भारत जैसे विविध देश में क्षेत्रीय पत्रकारिता का बहुत महत्व है। छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों की खबरें राष्ट्रीय स्तर पर अक्सर अनदेखी रह जाती हैं। क्षेत्रीय हिंदी समाचार पत्रों और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स को सशक्त करना आवश्यक है ताकि स्थानीय मुद्दों को उचित मंच मिल सके।

8. नैतिक मूल्यों का पतन: पत्रकारिता के मूल्यों, जैसे सत्यनिष्ठा, निष्पक्षता, संतुलन और सामाजिक उत्तरदायित्व का पतन भी एक चिंता का विषय है। 'टीआरपी की दौड़' और 'क्लिकबेट' पत्रकारिता को सतही बना रहे हैं।

आगे की राह: हिंदी पत्रकारिता का पुनर्जागरण

इन चुनौतियों के बावजूद, हिंदी पत्रकारिता का भविष्य आशावादी है। इसके लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाने की आवश्यकता है:

नैतिकता और विश्वसनीयता का पुनर्स्थापन: पत्रकारों और मीडिया संस्थानों को पत्रकारिता के मूल नैतिक सिद्धांतों का पालन करना होगा। तथ्यात्मक सटीकता, निष्पक्षता और संतुलित रिपोर्टिंग को प्राथमिकता देनी होगी।

पत्रकारों का सशक्तिकरण: पत्रकारों को बेहतर प्रशिक्षण, सुरक्षा और उचित पारिश्रमिक मिलना चाहिए ताकि वे बिना किसी भय या प्रलोभन के अपना काम कर सकें।

प्रौद्योगिकी का सकारात्मक उपयोग: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डेटा पत्रकारिता जैसी नई तकनीकों का उपयोग खबरों की गुणवत्ता और प्रसार में सुधार के लिए किया जाना चाहिए, न कि केवल गति और सनसनी के लिए।

पाठक/दर्शक जुड़ाव: मीडिया संस्थानों को अपने पाठकों और दर्शकों के साथ सीधे जुड़ना चाहिए, उनकी प्रतिक्रिया लेनी चाहिए और उनकी जरूरतों को समझना चाहिए।

विविधता और समावेशिता: खबरों में समाज के सभी वर्गों और विचारों को उचित प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए ताकि पत्रकारिता सही मायने में समावेशी बन सके।

वित्तीय स्थिरता के नए मॉडल: मीडिया संस्थानों को विज्ञापन पर निर्भरता कम करने और सदस्यता आधारित मॉडल या डोनेशन आधारित पत्रकारिता जैसे नए वित्तीय मॉडल तलाशने चाहिए।

कानूनी और नियामक ढाँचा: फेक न्यूज़ और दुष्प्रचार से निपटने के लिए एक प्रभावी और संतुलित कानूनी तथा नियामक ढाँचा विकसित करना आवश्यक है, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान करे और जवाबदेही भी सुनिश्चित करे।

निष्कर्ष

हिंदी पत्रकारिता ने पिछले 198 वर्षों में एक लंबा और शानदार सफर तय किया है। 'उदन्त मार्तण्ड' से लेकर आज के अत्याधुनिक डिजिटल प्लेटफॉर्म तक, इसने समाज को शिक्षित करने, जागरूक करने और स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का काम किया है। आज, जब सूचनाओं का अंबार है और विश्वसनीयता का संकट गहरा रहा है, हिंदी पत्रकारिता को अपने मूल सिद्धांतों की ओर लौटना होगा – सत्य, निष्पक्षता और जनहित।

यह केवल समाचार देने का माध्यम नहीं, बल्कि विचारों को आकार देने, लोकतंत्र को मजबूत करने और समाज को सही दिशा देने का एक शक्तिशाली उपकरण है। हिंदी पत्रकारिता दिवस हमें इस गौरवपूर्ण परंपरा का स्मरण कराता है और हमें भविष्य की चुनौतियों का सामना करने तथा पत्रकारिता के उच्च आदर्शों को बनाए रखने के लिए प्रेरित करता है। हिंदी पत्रकारिता को आने वाली पीढ़ियों के लिए सूचना, ज्ञान और प्रेरणा का स्रोत बने रहना है, ताकि यह सच्चे अर्थों में जनता की आवाज बनी रहे।

—अमरेश सिंह भदौरिया




Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ