Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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आवारा आशिक़ हूँ

 

 

अपने मेहबूब की हर धड़कन हर साँस से वाकिफ़ हूँ..
शायद लोग तभी कहते 'आवारा आशिक़' हूँ..

 

उसके नैना जैसे नील कमल..
उसका चेहरा जैसे सुबह की किरण..
उस पर ये बाल घनेरी सी..
कर देता है पागल तन मन..
लगता जैसे मैं पिछले जनम से ही उससे मुखातिब हूँ..
शायद लोग तभी कहते 'आवारा आशिक़' हूँ..

 

उसका मुझे देख के शरमाना..
अंदर ही अंदर मुस्काना..
उस पर से ये मासूम अदा..
छूटे ही उसका घबराना..
वो फूल गुलाबो का और मैं भँवरों के माफ़िक हूँ..
शायद लोग तभी कहते 'आवारा आशिक़' हूँ..

 

 

 

:- अभिजीत शर्मा (आवारा आशिक़)

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