Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मुक्तक

 

 

1.
दिल में हो दर्द अगर, शब्दों से तुम सजा लेना ॥
उसे कागज़ पे लिखना,और तुम गुनगुना लेना॥
कह-कहे लगायेंगे, तुम को सभी सुनने वाले,
लिखे अक्षर अक्षर को, तब चूम मुस्कुरा लेना ॥
--अभिषेक कुमार "अभी"

 

2.
बहुत उम्मीद से, वो फसल बोता है॥
फिर पूरे साल, वो बैठ के रोता है ॥
किस क़लम से विधाता ने भाग्य लिखा,
यहाँ सरीफ़ इन्सा ही हरपल खोता है॥
--अभिषेक कुमार 'अभी'

 

3.
देश की जनता अब तुम्हें, नहीं करेगी मांफ़
भ्रष्टतंत्रियों अब तुम्हारा, होगा सुपरा साफ़
वादे बेचे, इरादे बेचे और बेचे सारे ही सपने
ये तो अभी शुरुआत है, होगा सबका इंसाफ़
--अभिषेक कुमार "अभी"

 

4.
तवज़्जो जितना दिया, उतनी रुस़वाईयाँ मिली॥
महफ़िल में रहे फ़िर भी, हमें तनहाईयाँ मिली ॥
ग़लत होते जब भी देखा, ज़ुबाँ न रोक पाया,
ख़ुद में सबसे बड़ी हमें, यही ख़ामियाँ मिली ॥

 

5.

लहू का एक कतरा भी, बदन में है, मिरे जबतक
तमन्ना, सर परस्ती की, रहेगी सीने में, तबतक

अदा कर ही नहीं सकते, वतन का क़र्ज़ जो हमपर
करे कोई, गुस्ताख़ी शान में, तो बैठे घर कबतक

 

6.
बेमुरव्वत, बेवफ़ा, हरज़ाई, नाम दिया है
ये सभी उसने हमारे सर इल्ज़ाम दिया है

रात-दिन ज़िंदादिली से हम भी जीते यहाँ थे
दे शबेतारों को उसने हिस्से जाम दिया है

 


--अभिषेक कुमार 'अभी'

 

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