Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जब भी वो हमसे आये,यहा

 

 

जब भी वो हमसे आये,यहा
हमने उनके दर्शन पाये,यहा
शायद उनके मिलने
कोई बात,ऩई रहती थी,
उनके होने से ये चादनी,रात ऩई रहती थी
वो हमको अपना मानती,ये उनका दिल
जानता,होगा
मुझको है विश्वास वो
अपना मानता होगा,
उसके मिलने का अंदाज,जुदा रहता है
हमसे वो मन से
शायद खफा रहता,है
उसके मन की थाह
बहुत थी गहरी
डूब जाता जो वो
जिनको तैरना नही
आता,हो
मेरा दिल तो आज भी
ऊलझन मे उसको
पाता था,
उसका दिल ही
मुझे बहलाता था,
हुआ क्या जो वो खफा,होगये,
उनके रास्ते मेरे
रास्ते से जुदा,हो गये

 

 

 

आभिषेक जैन

 

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