Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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हर जगह तमाशा सा लगा है

 

 

हर जगह तमाशा
सा लगा है
बाजार की गलियो मे
शायद आज जश्न होगा,
चमन की कलियो मे
अब तो हर किसी
की,बातो मे वो रहने लगा,
अभी तक तो दिन मे
था,अब रातो मे भी
रहने लगा
सोते जागते बातो
उसी,की अब होगी
दिन भी उसीका
राते भी उसीकी होगी
बदला हुआ पारिवेश
है मन को भाता है
शायद फिर से देश
मे विकास लौटके आता,है

 

 

 

आभिषेक जैन

 

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