Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मौन हूं, पर गूंगा नहीं

 
मौन हूं, पर गूंगा नहीं हूं,
शीतल हूं पर जल नहीं हूं।
ठंडा बर्फ सा- तासीर गर्म,
अंजान हूं पर अंधा नहीं हूं।
खामोशी को कमजोरी माना,
विनम्रता को कमजोरी जाना।
कोशिशें अपनी रिश्ते बचाना,
मेरे त्याग को कमजोरी ठाना।
खोल दूं पल में सभी की साजिशें,
उधेड़ दूं दिल में छिपी ख्वाहिशें।
जानता हूं सब कुछ जो चल रहा,
पाप की किसके दिलों में रिहाईशें।
अ कीर्ति वर्द्धन

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