समन्दर
सिर्फ नकारात्मक सोच का, मत प्रचार कीजिये,
कुछ तो अच्छा होगा, उस पर भी विचार कीजिये।
माना कि अहंकार बहुत है, समन्दर को सदा से,
उसकी महानता का भी, जग में संचार कीजिये।
बेवजह गुमान नहीं करता, उसमे बहुत गहराई है,
पलते कितने जीव- जंतु, उसकी ही रहनुमाई है।
क्यूँ बदनाम करते हो, नमक बन जीवन देता है,
उतर कर देखो गहराई में, अथाह दौलत समाई है।
दे रहा है आसरा, सारे जहां की नदियों को,
समन्दर सा रहम दिल, कोई नही मिलता।
लगाते हो आरोप उस पर, प्यासा होने का,
तुमसा बेगैरत जमाने मे, कोई नही दिखता।
समन्दर से ही तो बादल पानी लेते हैं,
मीठा बना कर पानी जग को देते हैं।
पानी से जीवन धरा वनस्पति जगत में,
पानी का चक्र समन्दर खुद में समेटे है।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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