Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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लिमटी की लालटेन 129
जनसंख्या नियंत्रण कानून के साथ ही एक कानून इस पर भी बना दिया जाना चाहिए . . .
(लिमटी खरे)
देश की जनसंख्या को लेकर जमकर बहस चल रही है। जनसंख्या नियंत्रण को लेकर कानून की बातें भी सामने आ रही हैं। उत्तर प्रदेश में इसकी कवायद आरंभ हो गई है। यही सही समय है जबकि जनसंख्या नियंत्रण कानून के साथ ही साथ दो से ज्यादा कार, मकान, जमीन के टुकड़े, कंपनियां, स्कूल आदि रखने वालों को भी लाभों से वंचित रखे जाने का कानून बनाया जाए। देश का लगभग 73 फीसदी से ज्यादा धन महज एक फीसदी लोगों के पास ही है।

बहरहाल, उत्तरप्रदेश में जनसंख्या नियंत्रण कानून लाने की कवायद के मध्य सियासी बियावान में सरगर्मियां बहुत तेज हो चुकी हैं। उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार है, इसलिए यह बात किसी को बताने की आवश्यकता नहीं कि भाजपा और उसके सहयोगी दल इस नीति का समर्थन कर रहे हैं, और विपक्ष इसका विरोध!
यहां यह बताना लाजिमी होगा कि यूपी के निजाम योगी आदित्य नाथ के सिपाहसलारों ने उन्हें सूबे की सियासी हकीकत से शायद रूबरू नहीं कराया है। अगर आप उत्तर प्रदेश की विधान सभा की वेब साईट पर नजर डालें तो वहां 397 विधायकों का संपूर्ण डाटा उपलब्ध है। इसमें से भाजपा के विधायकों की तादाद 304 है। उत्तर प्रदेश विधान सभा में चुने हुए आठ विधायक ऐसे हैं जिनके आधा दर्जन अर्थात छः छः बच्चे हैं।
मजे की बात देखिए एक विधायक के आठ बच्चे हैं। एक विधायक के बच्चों की संख्या सात है। और तो और 152 विधायकों के तीन या उससे ज्यादा बच्चे हैं। 15 विधायकों के तो पांच पांच और 44 के चार चार बच्चों के साथ 83 विधायकों के तीन तीन बच्चे भी हैं। इन परिस्थितियों में अगर उत्तर प्रदेश में यह कानून लागू होता है तो इन सभी को न केवल चुनाव लड़ने पर रोक लगेगी वरन ये सभी सरकारी सुविधाओं से वंचित भी रह जाएंगे।
जनसंख्या नियंत्रण कानून का मसौदा भले ही उत्तर प्रदेश ने तैयार किया हो पर अब यह चिंगारी अन्य प्रदेशों में भी आग भड़काने का काम करती दिख रही है। मध्य प्रदेश में चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग, अरविंद भदोरया, मोहन यादव एवं भोपाल के भाजपा विधायक रामेश्वर शर्मा भी खुलकर सामने आते दिख रहे हैं, इस मसले पर। इनका मानना है कि आबादी बढ़ने के कारण संसाधनों के बटवारे पर प्रभाव पड़ रहा है।
देश के हृदय प्रदेश में यह नीति कांग्रेस के शासनकाल से ही लागू थी। दिग्विजय सिंह सरकार के द्वारा 26 जनवरी 2000 को ही जनसंख्या नियंत्रण कानून के तहत निर्देश जारी किए थे। उस समय सामान्य प्रशासन विभाग के द्वारा जारी निर्देश के अनुसार दो से अधिक बच्चे होने पर सरकारी कर्मचारी नौकरी के लिए पात्र नहीं होगा और मप्र सिविल सर्विसेज रूल्स 1961 की धारा 6(6) के तहत सरकार कर्मचारी को बर्खास्त कर सकती है। बाद में 2005 में भाजपा सरकार के द्वारा चुनाव लड़ने पर रोक के फैसले को 2005 में पलट दिया था।
इधर, कुछ संगठन इस कवायद की मुखालफत करते भी दिख रहे हैं। राष्ट्रीय जनता दल, ऑल इंडिया मजलिस - ए - इत्तेहादुल मुसलमीन (एआईएमएआईएम) जैसे राजनीतिक दलों के साथ-साथ कई मुस्लिम संगठन और नेता यूपी सरकार की जनसंख्या नीति के खिलाफ आ गए हैं।
जनसंख्या नीति की कवायद के विरोध में उतरे दारुल उलूम देवबंद से लेकर विभिन्न राजनीतिक दलों तक का कहना है कि यह मुसलमानों को लक्ष्य करके लाया जा रहा है। कुछ नेता इसे उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से जोड़कर भी देख रहे हैं।
इस मामले में उत्तर प्रदेश में जनाधार खोज रही कांग्रेस भी अब फ्रंट फुट पर ही दिख रही है। कांग्रेस के दिग्गज नेता और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील सलमान खुर्शीद ने योगी सरकार के मंत्रियों से अपने-अपने संतानों की संख्या बताने की मांग कर डाली है। उन्होंने कहा है कि सरकार को जनसंख्या नियंत्रण कानून लाने से पहले यह सूचना देनी चाहिए कि उनके मंत्रियों के कितने बच्चे हैं, उसके बाद विधेयक लागू करना चाहिए।
यहां हम आपको बताना चाहेंगे कि भारत ने वर्ष 1994 में जनसंख्या और विकास की घोषणा पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भाग लिया था और उसने सम्मेलन की घोषणा पर भी हस्ताक्षर किए थे। इसके मुताबिक, भारत ने यह माना था कि कोई दंपती अपने परिवार को कितना बड़ा करना चाहता है, यह तय करना उसका अधिकार होगा। इसमें यह भी कहा गया है कि दो बच्चों के जन्म के बीच की मियाद क्या होगी, यह अधिकार भी दंपती के पास ही सुरक्षित रहेगा।
जनसंख्या नियंत्रण कानून का विरोध कर रहे कांग्रेस के नेताओं को शायद यह नहीं मालुम होगा कि सत्तर के दशक में उस दौर के भविष्य दृष्टा संजय गांधी के द्वारा नसबंदी को बलात लागू कराया गया था। अगर उनके द्वारा नसबंदी को लागू नहीं कराया जाता तो निश्चित तौर पर आज आबादी लगभग दो गुना से कहीं ज्यादा हो चुकी होती।
इसी बीच अब यह बहस भी तेज होती दिख रही है कि दो बच्चों वाले कानून के साथ ही अगर एक व्यक्ति के पास या उसके नाम से दो मकान, दो भूखण्ड, एक करोड़ से ज्यादा नकद, दो शहरों से ज्यादा शहरों में जमीन, दो से ज्यादा कंपनियां, दो से ज्यादा कारें आदि नहीं रख सकता है वाला कानून भी आ जाए तो उचित होगा। इसमें दो से ज्यादा वाली हर वस्तु को कुर्क करने का अधिकार सरकार के पास होगा।
हमारे एक मित्र जो देश की आर्थिक राजधानी दिल्ली में रहते हैं। उनका नाम लिखना इसलिए लाजिमी नहीं होगा क्यों कि वे वरिष्ठ प्रशासनिक पद पर हैं, से चर्चा के दौरान उनका कहना हमें भाया कि आखिर क्या वजह है कि धन के असमान वितरण पर कोई कानून बनाने की बात नहीं कह रहा है। आज देश का 73 फीसदी धन महज 01 फीसदी लोगों के पास है और इसका दोष जनसंख्या बढ़ने को दिया जाए तो यह कहां तक उचित होगा! अगर यह कानून बन जाए तो देश में गरीबी, बेरोजगारी, शिक्षा, आरक्षण आदि का हल एक झटके में निकल सकता है।
देश में शिक्षा और चिकित्सा दोनों ही निशुल्क होना चाहिए। इसके अलावा अगर प्रति व्यक्ति शिक्षा के लिए महज एक सौ रूपए और बीमारी के लिए भी एक सौ रूपए हर साल लिए जाएं और अध्ययन एवं चिकित्सा के लिए अगर सिर्फ और सिर्फ सरकारी व्यवस्थाएं हों, अर्थात कोई निजि स्कूल नहीं, कोई निजि अस्पताल या दवाखाना नहीं कोई मेडिकल स्टोर या पैथालाजी लैब नहीं। अगर ऐसा हो जाए तो देश में अमीरी गरीबी का अंतर एक ही झटके में मिट सकता है। विडम्बना ही है कि सियासी बियावान में विचरण करने वालों को इससे ज्यादा लेना देना ही नहीं है।
घर से निकलते समय मास्क का उपयोग जरूर करें, सोशल डिस्टेंसिंग अर्थात सामाजिक दूरी को बरकरार रखें, शासन, प्रशासन के द्वारा दिए गए दिशा निर्देशों का कड़ाई से पालन करें। अगर आपको लिमटी की लालटेन पसंद आ रही हो तो आप इसे लाईक, शेयर व सब्सक्राईब अवश्य करें। हम लिमटी की लालटेन का 130वां एपीसोड लेकर जल्द हाजिर होंगे, तब तक के लिए इजाजत दीजिए . . .
(लेखक समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के संपादक हैं.)
(साई फीचर्स)

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