Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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उम्मीद - कोरोना संकटकाल में वरदान हो सकता है “आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस”

मानवीय सभ्यता और इतिहास चाहे विज्ञान से कितनी ही दूरी पर क्यों न रहे हों, किन्तु आधुनिक समय में विज्ञान मानव के जीवन का अभिन्न अंग बन गया है | विज्ञान और तकनीक ने एक जाल हमारे चहुँओर निर्मित कर दिया है, जिसके बिना हम जीवनयापन करना असमर्थ प्रतीत होता है | मुर्गे की बांग की जगह वैज्ञानिक अलार्म घडी या मोबाइल बजकर हमें जगाते है और पंखे, कूलर या ऐसी सुकून की नींद सुलाते हैं | इन सभी उपकरणों की तकनीक का ही तो नाम है – “विज्ञान” | आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को हिंदी में “कृत्रिम बुद्धि” कहा जाता है | जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, कि मशीन में सोचने-समझने और निर्णयन क्षमता का विकसित होना। इंसानों की भांति बुद्धिमत्ता यदि किसी मशीनी दिमाग में आ जाए तो यह किसी चमत्कार से कम नहीं है | यही तो है “विज्ञान का चमत्कार” जिसकी आज संकटकालीन स्थिति में भारत को सर्वाधिक आवश्यकता है |

वर्तमान का सहारा और भविष्य के सौन्दर्य की उम्मीद विज्ञान ही है | कोरोना संकटकाल से जूझते विश्व ने तकनीकी ज्ञान का उपयोग करके अनेक जांच मशीने तैयार कर ली हैं | भारत में अप्रैल महीने में एक दिन ऐसा भी आया, जिसमें एक दिन में दर्ज कोरोना संक्रमित व्यक्तियों की संख्या विश्व में सर्वाधिक भारत की थी | ऐसी भयावह स्थिति में जनता कर्फ्यू और सामाजिक दूरी का पालन स्वाभाविक है | किन्तु यह अंतिम हल नहीं है | खान-पान की वस्तुओं का व्यापार बंद करना, दवाइयों की दुकानें और चिकित्सा क्षेत्र से जुड़ी गतिविधियों पर रोक लगाना संभव नहीं हैं, लेकिन खतरा तो इनमें भी है | इसीलिए विचार आता है, कि क्यों न रश्मि की मदद ली जाए ? अब आप सोच रहे होंगे कि यह रश्मि कौन है? 


जरा ठहरिये | रश्मि किसी लड़की का नाम नहीं है, अपितु आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के अंतर्गत भारत में निर्मित विश्व की पहली हिंदीभाषी रोबोट है, जिसमें बोलने, सुनने, देखने, समझने, याद रखने और बात करने की कुशलता है | समाज में यदि रश्मि जैसे रोबोट्स को कोरोना संकटकाल में कुछ चयनित क्षेत्रों में व्यापार, प्रशासनिक व्यवस्था, मोनिटरिंग, डाटा कलेक्शन, जागरूकता, मास्क वितरण, सैनेटाईजेशन, वैक्सीन पंजीकरण हेप्लर और वाहन चालक उपयोग किया जा सकता है | इससे संक्रमण का फैलाव कम होगा साथ ही प्रशासन और सरकार को व्यवस्थाओं में मदद मिलेगी | वर्तमान में यह केवल एक विचार है, जो कहीं न कहीं भविष्य में ऐसा होने की आशा के साथ जीवित है | इसके परिपालन के लिए हमारे समाज को विज्ञान को और अधिक समझने की आवश्यकता है ताकि विज्ञान का प्रयोग सीमित, सुलभ और सही प्रयोगों के लिए ही हो व प्राकृतिक क्षति न हो | 

लेखक – उमेश पंसारी

विद्यार्थी, युवा नेतृत्वकर्ता व समाजसेवी, एन.एस.एस. और कॉमनवेल्थ स्वर्ण पुरस्कार विजेता

जिला सीहोर, मध्य प्रदेश

मो. 8878703926, 7999899308

Email – umeshpansari123@gmail.com

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