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कवि राजवीर सिकरवार

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जिंदगी लिखाई व पढ़ाई में चली गई-
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बाल उम्र बोल-चाल अ,आ,इ,ई सीखने में,
            पट्टी पै रँगाई व कढ़ाई में चली गई ।
शिक्षकीय कार्य में गँवाई थी जवानी सब,
      बच्चों की सिखाई व चढ़ाई में चली गई ।
और साथ-साथ काव्य मंचों का लगा था शौक,
        बाकी उम्र छंदों की गढा़ई में चली गई ।
लेखनी रुकी नहीं झुकी नहीं व "भारती" की,
         जिंदगी लिखाई व पढ़ाई में चली गई ।
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सबलगढ़ चम्बलांचल मुरैना

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