Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator
~~~ *मध्यप्रदेश लेखक संघ, भोपाल* ~~~
- - ई -3 / 325, अरेरा कालोनी, भोपाल - - 
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हिन्दी को बचाने और बढ़ाने की पहल हमें 
        ही करना होगी : संतोष चौबे
*हिन्दी ने ग़ज़ल को दिये नये तेवर और नया कलेवर* 
   मध्यप्रदेश लेखक संघ द्वारा 'ग़ज़ल रंग' आयोजित 
भोपाल । "अगर हमें हिन्दी को बचाना और बढ़ाना है तो पहल हमें ही करना होगी । इसी विचार से इसबार विश्वरंग को विश्व भाषा बनाने के अलावा राष्ट्र भाषा का दर्जा दिलाने के लिये महत्वपूर्ण प्रयासों का माध्यम बनाया जायेगा ।" यह कहना था विश्वरंग के निदेशक संतोष चौबे का जो मध्यप्रदेश लेखक संघ द्वारा विश्वरंग के पूर्व रंग  "ग़ज़ल रंग" के मुख्य अतिथि थे । आपने कहा कि विश्व भर से लोग हमारे इस अभियान से जुड़ रहे हैं और स्थानीय संस्थायें भी इसमें शामिल हैं जिनमें लेखक संघ प्रमुख है जिसका हमें प्रारंभ से ही साथ मिला है । कार्यक्रम के सारस्वत अतिथि मुकेश वर्मा ने कहा कि "अंतरराष्ट्रीय विश्व रंग महोत्सव भारतीय उपमहाद्वीप की भाषाओं के साहित्य के संवर्धन और कलाओं के उत्कर्ष के लिए आवश्यक गतिविधियों के विस्तार के लिए संकलपबद्ध है। इस ध्येय की प्राप्ति के लिए विश्व रंग महोत्सव में 56 देशों को जोड़ा गया है । इसी क्रम में मध्यप्रदेश लेखक संघ के अभिनव कार्यक्रम 'ग़ज़ल रंग' से स्थानीय संस्कृति एवं साहित्य को नये आयाम प्राप्त हुए हैं । विशेष अतिथि विजय वाते ने कहा कि "जब जीवन की अनुभूतियाँ मात्र दो मिसरों में तीव्रता से अभिव्यक्त होती है तो शेर बनता है और ऐसे ही शेरों की माला को ग़ज़ल कहते हैं । कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए संघ के प्रदेशाध्यक्ष डाॅ. राम वल्लभ आचार्य ने कहा कि हिन्दी ने ग़ज़ल को नये तेवर और नया कलेवर दिया है । मानवीय संवेदना को स्थान मिलने से ग़ज़ल आम आदमी के ज्यादा करीब आई है ।" 
इस अवसर पर अनेक वरिष्ठ ग़ज़लकारों ने अपनी बेहतरीन ग़ज़लों का वाचन किया ।
*किसने क्या पढ़ा*-
डाॅ. राम वल्लभ आचार्य -
"जीवन क्या है इक बवाल है बाबूजी, 
बस दो रोटी का सवाल है बाबूजी ।"
विजय वाते -
सिर पे साया उसे जो मिला ही नहीं,
उसकी सारी सुबह खा गयी दोपहर ।
महेश अग्रवाल - 
"खुद को मैं अलगू करता हूँ, जुम्मन करता हूँ, 
ऐसे सारे रिश्तों का अभिनंदन करता हूँ । " 
अशोक 'निर्मल' - 
"खारापन मिलता है  मुझको अन्तर  से, 
मैं नमक बनाता हूँ आँखों के समंदर से ।"
किशन तिवारी -
"आ गया जनतंत्र अब उनके निशानों पर,
आज हमले हैं उसी के संस्थानों पर ।"
डॉ. राजश्री रावत 'राज' -
"बात कुछ और है जो तुम्हें सुनाना है,
मेरी ग़ज़ल तो मेरी बात का बहाना है ।"
दिनेश मालवीय "अश्क"
"दिया रोशन हुआ तो दूर सारी तीरगी होगी,
हवा ही कर सकेगी फैसला क्या रोशनी होगी ।"
सुरेन्द्र श्रीवास्तव -
"इक अजब रिश्ता रहा है दिल का गहराई के साथ,
कल कुँए के साथ था यह आज है खाई के साथ ।"
सुरेश पबरा 'आकाश' -
"फर्ज़ अपने पास उनके पास तो अधिकार है,
हम निहत्थे और उनके हाथ में तलवार है ।"
राजेन्द्र गट्टानी -
हक़ बयाँ करते हुए अल्फ़ाज होना चाहिये,
हाँ, ग़ज़ल में रूह की आवाज़ होना चाहिये ।
हरि वल्लभ शर्मा 'हरि' -
"सत्य के पक्ष में दृढ़ रहो मित्रवर,
तुम गलत को गलत ही कहो मित्रवर ।"
रमेश 'नंद' -
"सफर अपने जीवन का आसान रख,
जरूरत से ज्यादा न सामान रख ।" 
मनीष 'बादल'
"दरो-दीवार चुनने से ही डेरा तो नहीं होता,
जहाँ दिल से न मिलता दिल बसेरा तो नहीं होता ।"
प्रारंभ में अतिथियों द्वारा सरस्वती प्रतिमा पर माल्यार्पण के पश्चात संघ के उपाध्यक्ष प्रभु दयाल मिश्र ने स्वागत वक्तव्य दिया तथा अन्त में राजेन्द्र गट्टानी ने आभार प्रदर्शन किया । कार्यक्रम का संचालन डाॅ. प्रीति प्रवीण खरे ने किया । अंत में हाल ही में दिवंगत साहित्यकार राधेलाल बिजघावने तथा कृष्ण बक्षी को दो मिनिट का मौन रखकर श्रद्धांजलि अर्पित की गयी ।
कार्यक्रम में डाॅ. विकास दवे, महेश सक्सेना, बलराम गुमाश्ता, पं. सुरेश तातेड़, राम मोहन चौकसे, डाॅ. राजेश श्रीवास्तव, डाॅ. मोहन तिवारी आनन्द, मो. शफी रतलामी, गोकुल सोनी, पुरुषोत्तम तिवारी, राजेश तिवारी, चरनजीत सिंह कुकरेजा, दीपक पंडित, लक्ष्मी कांत जवणे, अशोक व्यग्र, आबिद काज़मी, सुनील दुबे वृक्षमित्र, अभिषेक जैन, राज कुमार बरुआ, एस.एन मिश्रा, श्रीमती कुमकुम गुप्ता, सीमा हरि शर्मा, रूपाली सक्सेना, जया आर्य, सुधा दुबे, राजकुमारी चौकसे, अनीता सक्सेना, पद्मा शर्मा, जया आर्य, प्रभ मिश्रा एवं रश्मि मिश्रा सहित लगभग साठ से अधिक साहित्यकार उपस्थित थे ।
सादर प्रकाशनार्थ
प्रतिवेदन ( रिपोर्ट ) -
राजेन्द्र गट्टानी
प्रादेशिक मंत्री

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