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Dr. Srimati Tara Singh
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मुफ्त का चंदन                                                                                 डाॅ. शशि तिवारी
    मुफ्त की चीजें किसे अच्छी नहीं लगती, अधिकांश लोगों का उत्तर होगा हां सभी को कुछ अपवादों को छोड़। इस प्रथा से एक आलस्य की प्रवृत्ति बढ़ती हैं। व्यक्ति में नाकारापन की प्रवृत्ति भी जन्म लेने लगती हैं। आजकल सरकारे चावर्क के सिद्धांत अर्थात् जब तक मानव जीवन है तब तक सुख के साथ जीना चाहिए। भले ही इसके लिए दूसरों से ऋण लेकर भी घी पीना संभव हो तो निःसंकोच पीना चाहिये। वर्तमान में राजनीतिक पार्टियों के मध्य चुनावी रेवड़ियों की एक प्रतिस्पर्धा सी चल निकली है बिना इसकी परवाह किये कि, राजकोष की स्थिति क्या हैं? राजनीतिक पार्टियों का एक ही फार्मूला रहता है कि, अगर जीते तो टैक्स बढायेंगे ओर हारे तो दाव खेला। वर्तमान में महंगाई बढ़ने का यह भी एक कारण हो सकता है। इस ओर किसी भी राजनीतिक पार्टी का ध्यान नहीं है। यहां यक्ष प्रश्न उठता है कि, चुनावी मौसम में ही ‘‘फ्री कल्चर’’ की भरमार क्यों? वास्तव में सरकार को निष्पक्ष रूप से ऐसी योजनायें चलानी चाहिए जिससे लोगों को रोजगार मिले, आत्मनिर्भर बने। फ्री कल्चर सिर्फ और सिर्फ नाकारा बना सकता है, एवं कालांतर में यही ‘‘फ्री कल्चर’’ कहीं अधिकार न बन जाए तो कोई बड़ी बात नहीं होगी।     वास्तव में हमारा देश/प्रदेश जनता के ही टैक्स के पैसों से चलता है फिर विकास या ‘‘फ्री कल्चर’’ में सरकारे जनता की सहमति क्यों नहीं लेती? वास्तव में टैक्स के पैसों को खर्च करने की जवाबदेही अफसरों की होती हैं? वास्तव में पैसों का दुरूपयोग होने पर इन अफसरों पर जवाबदेही तय होना ही चाहिए। देश के प्रधानमंत्री भी कई बार कह चुके है कि, नाकारा एवं भ्रष्ट अफसरों की एक सूची तैयार की जावें। आज अफसर भी नेताओं जैसे वक्तव्य देने लगे है मसलन हम देख रहे हैं, जांच चल रही है, किसी भी दोषी को छोड़ा नहीं जायेगा आदि, आदि। यहां भी अफसरों की जवाबदेही तय हो कार्यवाही होना चाहिये।     वर्तमान में ऋण लेने की सीमा जी.डी.पी. का 5.9 प्रतिशत केन्द्र सरकार के लिए एवं राज्यों के लिए 3 प्रतिशत है।
    राज्यों के जी.एस.डी.पी. की तुलना में कर्ज की स्थिति राजस्थान (15.7) कर्ज, 36.8 प्रतिशत मध्यप्रदेश (12.87), 30.4 प्रतिशत तेलंगाना (14) 23.8 प्रतिशत, छत्तीसगढ़ (5.07) 23.8 प्रतिशत इस तरह राज्यों का सीमा से ज्यादा बढ़ता कर्ज और इसी तरह कर्ज लेने की प्रवृत्ति रही तो इन राज्यों का भविष्य ठीक नहीं हैं। यहां अधिकारियों को भी सरकार को सही/गलत के बारे में नोटशीट पर अवगत कराते रहना चाहिए एवं दोषी अधिकारियों को दंडित किया जाना चाहिये।    आम जनता को भी ये जानने का हक सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 ने पहले से ही दे रखा है। ऐसे दोषी अधिकारियों को भी दण्डित किया जाना चाहिए।     आर. बी. आई. की 31 मार्च 2023 तक की रिर्पोट में यह बात निकलकर आई है कि, म.प्र.राजस्थान, पंजाब एवं बंगाल जैसे राज्य टैक्स के कुल कमाई का 35 प्रतिशत तक का हिस्सा ‘‘फ्री’’ योजनाओं पर खर्च करते हैं।     एक रिर्पोट के अनुसार म.प्र. राजस्थान, पंजाब, दिल्ली, कर्नाटक, छत्तीसगढ़ विगत 7 सालों में 1.39 लाख करोड़ की ‘‘फ्रीबीज’’ दी या घोषणाएं की।     म.प्र. में चलने वाली फ्री योजनाओं में मुख्यतः लाड़ली बहना योजना उसमें 1000 रूपये प्रतिमाह के स्थान पर 1250 रूपये इसे भी बढ़ाकर 3000 रूपये करने का सरकार का वादा है। लाड़ली बहना आवास योजना जिसमें आवास विहिन को आवास देना तीसरा मुख्यमंत्री हवाई तीर्थ योजना, मुख्यमंत्री किसान कल्याण योजना, 6000 रूपये देने की बात, ब्याज भुगतान इसमें किसानों का कर्जा सरकार भरेगी, महिलाओं के लिए सरकार गैस सिलेण्डर आदि एक रिपोर्ट के अनुसार सरकार को मिलने वाले आयकर की कुल राशि का केवल 5 प्रतिशत लोग ही भर रहे है। यहां यक्ष प्रश्न सरकार से उठता है कि, ये सब फ्रीबीज जनता की गाढ़ी कमाई से होता है तो फिर टैक्स पेयर से क्यों नहीं पूछा जाता हैं? इस देश में टैक्स पेयर को किसी भी प्रकार की कोई भी सुविधा नहीं है जो कि, प्राथमिकता के आधार पर होना ही चाहिये। टैक्स पेयर में भी असंतोष का बीज पनप रहा है। यही कारण है कि, टैक्स चोरी की घटनाएं एवं काला धन भी बढ़ रहा है। पड़ने वाले छापे इसका सबूत हैं, जहां-जहां जिस-जिस पर भी छापा पड़ा अकूत धन की बरामदगी हुई फिर चाहे वह नौकरशाह हो, नेता हो, व्यापारी हो या इनके गठजोड़ का ठेकेदार हो।
    यहां सबसे दुःखद पहलू यह है कि, कोई भी राजनीतिक दल फ्री बीज में पीछे रहना नहीं चाहता। इस संबंध में सभी आशा भरी नजरों से न्यायालय की ओर देख रहे हैं।     उच्चतम न्यायालय ने म.प्र. एवं राजस्थान में विधानसभाओं से पहले मुफ्त की रेवड़ी बांटने का आरोप लगाने वाली जनहित याचिका पर दोनों सरकारों से सवाल पूछा है, प्रधान न्यायाधीश जे.बी.बाई, चन्द्रचूड़़़, न्यायमूर्ति जे.वी.पारदीवाला एवं न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा ने सावर्जनिक धन के दुरूपयोग से जुड़ी जनहित याचिका पर केन्द्र निर्वाचन आयोग एवं भारतीय रिजर्व बैंक को भी नोटिस जारी किया है।     वास्तव में आई. पी. सी. की धारा 171 बी एवं 171 सी के अनुसार मुफ्त बांटना एक रिश्वत हैं।     चुनाव आयोग का मानना है कि, फ्री बीज योजनाओं को रेगुलेट करना चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है। यह राजनीतिक पार्टियों का अपना नीतिगत फैसला होता है। जब तक इस संबंध में कोई नियम नहीं बन जाता तब तक इन पर कार्यवाही करना चुनाव आयोग के लिए संभव नहीं है। वास्तव में न्यायालय ही तय करें कि, फ्री बीज/योजनाओं की परिभाषा क्या हैं?
                                     लेखिका सूचना मंत्र पत्रिका की संपादक है                                                         मो. 9425677352


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