Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मंजिल कोसो दूर थी ,मैं राही अनजान !
पता राह का दे गई,तेरी इक मुस्कान !!
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मैं प्यासा राही रहा, तुम हो बहती धार।
अंजुली भर बस बाँट दो, मुझको प्रिये प्यार।।
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मेरी आदत में रमे, दो ही तो बस काम।
एक हाथ में लेखनी, दूजा तेरा नाम।।
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खत वो तेरे प्यार का,देखूं जितनी बार !!
महका-महका सा लगे,यादों का संसार !!
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पंछी बनकर उड़ चले, मेरे सब अरमान !
देख बिखेरी प्यार से,जब तुमने मुस्कान !!
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आँखों में बस तुम बसे,दिन हो चाहे रात !
प्रिये तेरे बिन लगे, सूनी हर सौगात !!
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सजनी आकर बैठती,जब चुपके से पास !
ढल जाते हैं गीत में, भाव सब अनायास !!
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आँखों में सपने सजे,मन में जागी चाह!
पाकर तुमको है प्रिये,खुली हज़ारों राह !!
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तुम ही मेरा सुर प्रिये,तुम ही मेरा गीत!
तुम को पाकर हो गया, मैं जैसे संगीत!!
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तुमसे प्रिये जिंदगी, तुमसे मेरे ख्वाब !
तुम से मेरे प्रश्न हैं, तुम से मेरे जवाब !!
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बिन तेरे लगता नहीं,मन मेरा अब मीत!
हर पल तुमको सोचता,रचता ग़ज़लें गीत!!
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✍ - डॉo सत्यवान सौरभ,
रिसर्च ऑथोर्, कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार

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