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लिमटी की लालटेन 254

मंहगाई चरम पर, आखिर कब ईमानदारी से बोलेंगे सियासतदार!

मंहगाई का जिन्न छीन रहा गरीबों का सुख चैन . . .

(लिमटी खरे)

कोविड काल के आरंभ होते ही मंहगाई का ग्राफ इस कदर बढ़ना आरंभ हुआ कि अब इसे रोकना बहुत ही मुश्किल प्रतीत हो रहा है। जनसामान्य कराह रहा है, सत्ताधारी नीरो के मानिंद बंसुरी बजा रहे हैं तो विपक्ष मानो धृतराष्ट्र की तरह सब कुछ समझ सुनकर मौन ही धारित किए हुए है। विपक्ष सरकार पर बाण तो चला रहा है पर बोथरे बाणों में वो ताकत कहां जो जनता का हित साध सकें।

मंहगाई की उच्चतर दरें लोंगों के दैनिक जीवन पर बुरी तरह असर डालती दिख रही है। दरअसल, ईंधन की दरों में इजाफा होने से बाकी चीजों की दरें अपने आप ही बढ़ जाती हैं। बाजार में वस्तुओं की दरों पर किसी का कोई नियंत्रण नहीं होने से जिसका जो मन हो रहा है उस दर पर सामान बेचा जा रहा है।

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्ट पर अगर आप नजर डालें तो 2021 की तुलना में इस साल वैश्विक मुद्रास्फीति की दर में लगभग तीन गुना से ज्यादा की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। विदेशों से आने वाला कच्चा माल कोविड की मार के चलते नहीं आ पाया, जिससे मांग और आपूर्ति में बड़ा अंतर देखने को मिला। इसके अलावा रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध के कारण भी रोजमर्रा की वस्तुओं, खाद्यान्न, ईंधन आदि की कीमतों में बेहिसाब बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है।

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अर्थव्यवस्था के जानकारों की मानें तो मंहगाई का असर सभी पर अलग अलग ही होता है। मंहगाई अनेक घटकों, जैसे जीवनशैली, आपकी वित्तीय स्थिति, आपकी आदतें आदि पर निर्भर करती हैं। इसका असर अलग अलग आयुवर्ग पर भी प्रथक प्रथक ही होता है। विश्व बैंक के एक अध्ययन के मुताबिक कम आमदानी वालों पर मंहगाई का असर सबसे ज्यादा होता है।

2021 और 2022 में बाजार का अगर आंकलन किया जाए तो आप पाएंगे कि एक साल में ही खाने के तेल, सब्जियों, फल, गेंहॅं, चावल, दाल, मसालों, दूध आदि के दामों में 10 से 30 फीसदी तक की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। रसोई गैस, डीजल, पेट्रोल, कैरोसीन आदि की बात की जाए तो इनके दामों में चालीस फीसदी से ज्यादा बढ़ोत्तरी हो चुकी है। यहां आपको यह बताना जरूरी होगा कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में इन सभी खाद्य सामग्रियों की हिस्सेदारी पचास फीसदी से ज्यादा की है। इस लिहाज से मंहगाई का दंश देश की लगभग सत्तर फीसदी जनता भोगने पर विवश है।

देश में अर्थव्यवस्था के जानकार और भारतीय रिजर्व बैंक के द्वारा मंहगाई अभी चार माह अर्थात सितंबर तक बने रहने का अनुमान जताया जा रहा है। अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि जिनकी आय कम है अथवा जिनका रोजगार या व्यापार कोविड कॉल में छिन चुका है उन पर चार माह किस तरह भारी बीतेंगे।

बैंक की अगर बात करें तो बैंक में बचत खातों पर दिया जाने वाला ब्याज ऊॅट के मुंह में जीरे के मानिंद ही साबित होता दिखता है। सावधि जमा पर पहले साढ़े आठ फीसदी ब्याज मिलता था जो अब छः फीसदी पर आकर टिक गया है। पीपीएफ पर मिलने वाला ब्याज भी कम हो गया है।

सरकार के द्वारा अपने अपने कर्मचारियों को मंहगाई भत्ता हर साल बढ़ा दिया जाता है। इससे सरकारी वेतन पाने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों पर तो इसका ज्यादा असर नहीं होता है किन्तु आम जनता जिसमें रोज कमाने खाने वालों की तादाद ज्यादा है, वे अपना जीवन निर्वाह कैसे करते होंगे यह सोचकर ही रूह कांप उठती है।

उमरदराज हो चुके लोग जो अपनी जीवन भर की बचत पर अथवा बहुत ही मामूली पैंशन पर आश्रित होते हैं उनके लिए महंगाई किसी डरावने सपने से कम नहीं है। उम्र के अंतिम पड़ाव में लोग खाना कम दवाएं ज्यादा खाते हैं। मंहगाई के चलते अगर दवाएं महंगी हैं तो इन बेचारों का निर्वाह कैसे होता होगा! सरकारी स्तर पर सेवानिवृत हुए कर्मचारियों को तो अनेक राज्यों में पैशन तक समाप्त कर दी गई है। उन्हें निशुल्क मिलने वाली दवाएं भी नहीं मिल पा रही हैं।

देश में साठ साल से ज्यादा आयुवर्ग के लोगों की तादाद डेढ़ करोड़ से ज्यादा है। ये अपने स्वास्थ्य के लिए दवाएं तक नहीं खरीद पाते हैं। इनके पास खुद का आवास, शौचालय आदि जैसी मूलभूत सुविधाएं तक नहीं हैं। सरकार के द्वारा योजनाएं तो बहुत लोक लुभावन बनाई जाती हैं, पर जमीनी स्तर तक पहुंचते पहुंचते ये योजनाएं नेताओं के लिए चारागाह बन जाती हैं।

इन परिस्थितियों में जब जनता मंहगाई को लेकर त्राहीमाम त्राहीमाम करती नजर आ रही है फिर भी विपक्ष इसे राष्ट्रीय स्तर पर मुद्दा क्यों नहीं बना पा रहा है, यह शोध का विषय माना जा सकता है, क्योंकि यह तो वह आग है जिसे विपक्ष को फूंकने की भी जरूरत शायद नहीं पड़ेगी। विपक्ष को आत्म मंथन करना होगा कि इतना बढ़िया मौका आखिर वह भुनाने में असफल क्यों साबित हो रहा है। कहा जाता है कि विपक्ष अगर मौन हो जाए तो सत्ताधारी निरंकुश हो जाते हैं और देश के वर्तमान हालातों में कमोबेश यही होता दिख रहा है।

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(लेखक समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के संपादक हैं.)

(साई फीचर्स)


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