Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator
बृहस्पतिवार, 18 अप्रैल 2013
"टॉम-फिरंगी प्यारे-प्यारे..." (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मित्रों!
यह रचना आज से डेढ़ साल पहले लिखी थी!
कल हमारा टॉम हमसे विदा हो चुका है।
आज उस को इंगित करके लिखी गयी 
इस पुरानी कविता को प्रस्तुत कर रहा हूँ!
टॉम-फिरंगी प्यारे-प्यारे।
दोनों चौकीदार हमारे।।
हमको ये लगते हैं अच्छे।
दोनों ही हैं सीधे-सच्चे।।
जब हम इनको हैं नहलाते।
ये खुश हो साबुन मलवाते।।  
बाँध चेन में इनको लाते।
बाबा कंघी से सहलाते।।
इन्हें नहीं कहना बाहर के।
संगी-साथी ये घरभर के।।
ये दोनों हैं बहुत सलोने।
सुन्दर से जीवन्त खिलौने।।

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ