Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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चढ़ रहा पारा, शालाओं में उबल रहे विद्यार्थी!
न प्रशासन को चिंता न ही शाला प्रबंधन दिख रहा फिकरमंद
(अखिलेश दुबे)
सिवनी (साई)। अप्रैल माह में पारे की रफ्तार तेज हो रही है। पारा 40 के पार ही चल रहा है। सुबह होते ही गर्मी का एहसास होने लगता है, इन परिस्थितियों में अप्रैल माह में शालाओं के लगाये जाने पर अब सोशल मीडिया में सुर बुलंद होते दिख रहे हैं। शालाओं में पंखे भी गर्म हवाएं फेंक रहे हैं, जिससे विद्यार्थी असहज ही महसूस कर रहे हैं।
कुछ दशक पहले तक वार्षिक परीक्षाएं मार्च के अंत तक संपन्न हो जाती थीं और उसके बाद 30 अप्रैल को परीक्षा परिणाम घोषित होते थे। नया शैक्षणिक सत्र 01 जुलाई से आरंभ होता था। नब्बे के दशक में अचानक ही केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय के द्वारा विद्यार्थियों के ग्रीष्म कालीन अवकाश में कटौती कर दी गयी।
पालकों के बीच चल रहीं चर्चाओं के अनुसार मार्च के अंत में ही गर्मी का प्रकोप जमकर होने लगता है फिर अप्रैल माह के अंत तक शालाएं लगाने का औचित्य समझ से परे ही है। लोगों का कहना है कि गर्मी में जब बच्चे बीमार होना आरंभ होते हैं तब कक्षाएं 25 अप्रैल तक कर दी जाती हैं।
चर्चाओं के अनुसार जब मीडिया में इस तरह की खबरें आना आरंभ होती हैं उसके बाद प्रशासन मसीहा बनकर सामने आता है और शालाओं को 15 या 20 अप्रैल के बाद लगाये जाने पर पाबंदी लगाते हुए ग्रीष्म कालीन अवकाश की घोषणा कर दी जाती है। लोगों का कहना है कि इससे निजि शैक्षणिक संस्थानों को अप्रैल माह की पूरी फीस लेने का मौका भी मिल जाता है।
चर्चाओं के अनुसार हर साल अप्रैल माह में तीज त्यौहारों के कारण हर साल पाँच से सात दिन के अवकाश होते हैं। इस तरह अ्रप्रैल माह में बमुश्किल दस से बारह दिन ही शाला लग पाती हैं, पर पालकों को पूरे माह की फीस का भोगमान भोगना पड़ता है।
चल रहीं चर्चाओं के अनुसाार मार्च माह में हर व्यक्ति के द्वारा आयकर भरा जाता है। मार्च में लोगों को वेतन भी आयकर काटने के बाद आधा अधूरा ही मिल पाता है। इसके बाद अगर नया शैक्षणिक सत्र 01 अप्रैल से आरंभ किया जाता है तो वह परिवार आर्थिक तंगी से दो चार हुए बिना नहीं रहता है।
चर्चाओं के अनुसार इसका कारण यह है कि शालाओं के द्वारा री एडमीशन के नाम पर दस से बीस हजार रुपए के अलावा तीन माह की एक मुश्त फीस जमा करवायी जाती है। इसके अलावा नये शैक्षणिक सत्र में महंगी पुस्तकें, गणवेश आदि के नाम पर हो रही लूट भी आम आदमी को तोड़कर रख देती है।
लोगों का कहना है कि शैक्षणिक सत्र को 01 जुलाई से अगर आरंभ नहीं कर सकते हैं तो 15 जून से आरंभ कराया जाये, पर अप्रैल माह में शालाएं लगाने की प्रथा को बंद किया जाना चाहिये। इसके अलावा कॉपी - किताब, गणवेश आदि के संबंध में प्रशासन के द्वारा जारी आदेश का पालन भी सुनिश्चित कराया जाना चाहिये।

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फॉगिंग मशीन गायब, मच्छरों ने किया जीना दुश्वार
(ब्यूरो कार्यालय)
सिवनी (साई)। कुछ दिनों तक बादल और बूंदाबांदी के बाद अब गर्मी के मौसम के आगाज के साथ ही मच्छरों की फौज ने जिला मुख्यालय में अचानक ही हमला बोल दिया है, जिससे नागरिक हलाकान नजर आ रहे हैं। नगर पालिका परिषद का ध्यान दीगर जरूरी कामों में उलझा दिख रहा है जिससे वह इस ओर ध्यान नहीं दे पा रही है।
शहर का शायद ही कोई इलाका इससे अछूता होगा जहाँ मच्छरों की सैकड़ों की तादाद वाली टोलियां लोगों को परेशान न कर रहीं हों। शहर में मच्छरों के आतंक से शाम ढलते ही लोग अपने - अपने घरों की खिड़की और दरवाजे बंद करने पर मजबूर ही नजर आ रहे हैं।
इसी तरह शहर में चारों ओर पसरी गंदगी और गाजर घास इन मच्छरों के प्रजनन के लिये उपजाऊ माहौल तैयार करती दिख रही है। स्थान - स्थान पर नालियों में जमा कचरे के कारण पानी की निकासी न होने से एकत्र पानी में मच्छरों के लार्वा आसानी से देखे जा सकते हैं।
कहाँ है फॉगिंग मशीन रू मच्छरों के शमन हेतु नगर पालिका परिषद के द्वारा फॉगिंग मशीन का प्रयोग किया जाता रहा है। पिछले कई सालों से महीने में एकाध बार ही यदा कदा दवा रहित धुंआ उड़ाती फॉगिंग मशीन को देखा जा सकता है। लोगों का आरोप है कि पालिका के द्वारा फॉगिंग मशीन को व्हीव्हीआईपी इलाकों में ही मात्र घुमाया जाता है।
वैसे बारापत्थर, गंज, कटंगी नाका सहित शहर के किसी भी इलाके में लोगों को फॉगिंग मशीन का शोर अथवा धुंआ महीनों से सुनायी या दिखायी नहीं दिया है। वहीं पालिका के सूत्रों का दावा है कि पालिका द्वारा हर माह फॉगिंग मशीन के नाम पर अच्छी खासी रकम का आहरण भी कर लिया जाता है।

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