Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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कलेक्टर्स के साथ ही बिदा होते उनके निर्देश!
(लिमटी खरे)
यह बहुत बड़ी विडंबना ही कही जायेगी कि एक जिला प्रमुख के तबादले के समय उनके द्वारा दिये गये दिशा-निर्देशों को उनके मातहत अधिकारियों द्वारा बिसार दिया जाता है। आने वाले जिला प्रमुख के आने के साथ ही सारी प्राथमिकताएं मानों बदल जाती हों। इसी तरह के नज़ारे सिवनी में भी लोग दशकों से देखते आ रहे हैं। यह बात तब लागू होती है जब जिला कलेक्टर या जिला पुलिस अधीक्षक का तबादला होता है।
0 मोहम्मद पाशा राजन सिवनी में 28 जुलाई 1983 से 28 जून 1985 तक पदस्थ रहे। उनके कार्यकाल के मध्य में 1984 में दल सागर तालाब की सफाई का कार्य कराया गया था। उन्होंने महसूस किया था कि दल सागर तालाब बेहद गंदा हो चुका है, इसकी गाद निकाल दी जानी चाहिये। गर्मी के मौसम में दलसागर तालाब को खाली कराकर इसकी सफाई करायी गयी थी। उनके बाद आभा अस्थाना सिवनी में पदस्थ हुईं पर उन्होंने दल सागर की सुध लेना मुनासिब नहीं समझा।
0 पुखराज मारू 25 मार्च 1991 से 06 अगस्त 1992 तक कलेक्टर रहे, उनके कार्यकाल में सिवनी में अतिक्रमण विरोधी अभियान चरम पर रहा। जी.एन. रोड पर बस स्टैण्ड से छिंदवाड़ा नाके तक के हिस्से मेें अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही हुई। उनके तबादले के उपरांत श्रीमति रश्मि शुक्ला शर्मा आयीं पर अतिक्रमण विरोधी अभियान को ठण्डे बस्ते के हवाले कर दिया गया।
0 एम.मोहन राव 07 सितंबर 1994 से 04 जुलाई 1995 तक सिवनी में पदस्थ रहे। उनके कार्यकाल की उल्लेखनीय उपलब्धि जिला चिकित्सालय का कायाकल्प मानी जा सकती है। एम.मोहन राव खुद शाम को प्राइवेट वार्ड के सामने वाले मैदान (वर्तमान में नवनिर्मित मेटरनिटी वार्ड) में कुर्सी डालकर बैठ जाते थे और चिकित्सालय के कायाकल्प को सामने से कार्यरूप में परिणित करवाते थे। उनके सक्सेसर रहे संजय बंदोपाध्याय के कार्यकाल में जिला चिकित्सालय की ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया।
0 मोहम्मद सुलेमान, सिवनी में 25 जून 1997 से 20 जून 2000 तक जिलाधिकारी रहे। उनके कार्यकाल की सबसे बड़ी उपलब्धि गृह निर्माण मण्डल के सहयोग से बना प्राइवेट बस स्टैण्ड और बैनगंगा शॉपिंग कॉम्प्लेक्स था। इसके साथ ही साथ रोगी कल्याण समिति को आत्म निर्भर बनाने के लिये उनके द्वारा अस्पताल की चारदीवारी पर शॉपिंग कॉम्प्लेक्स का निर्माण करवाया गया था। इसके अलावा सिवनी का आईसीसीयू भी उन्हीं के कार्यकाल की देन है। उनके सक्सेसर रहे दिनेश श्रीवास्तव के कार्यकाल में न तो प्राइवेट बस स्टैण्ड की ही सुध ली गयी और न ही जिला अस्पताल की।
0 डॉ.जी.के. सारस्वत 21 जुलाई 2004 से 22 जनवरी 2006 तक जिलाधिकारी रहे। उनके कार्यकाल में जनता के भारी विरोध के बाद भी गणतंत्र दिवस पर दिल्ली के राजपथ पर प्रदर्शित मोगली की लगभग सवा छः लाख रुपये से निर्मित झाँकी को म्युनिस्पिल मैदान (दशहरा मैदान) के बाहर सड़क पर लगवा दिया गया था। इसके अलावा उन्होंने जिला चिकित्सालय के कॉरीडोर को बांस की जाफरी से बंद करवा दिया था। उनके इस निर्णय का भी भारी विरोध हुआ था। उनके तबादले के उपरांत पदस्थ हुए अनिल यादव के कार्यकाल में अचानक ही मोगली की झाँकी को वहाँ से हटा दिया गया। इस झाँकी की प्रतिमाओं के अवशेष आज भी बबरिया फिल्टर प्लांट के पीछे देखे जा सकते हैं। अस्पताल में कॉरीडोर के बांस की जाफरी भी इसी दौर में गायब हो गयी थी।
0 भरत यादव, सिवनी में 13 मार्च 2013 से 08 जनवरी 2016 तक कलेक्टर रहे। भरत यादव के कार्यकाल में मॉडल रोड जैसी महत्वाकांक्षी योजना को अक्टूबर 2013 में आरंभ कराया गया था। इसका निर्माण अगस्त 2014 तक (11 माह में) पूरा कर लिया जाना चाहिये था। मजे की बात तो यह है कि 2015 के सितंबर माह में जब भरत यादव के द्वारा मॉडल रोड का निरीक्षण किया गया तब उन्होंने सड़क के कुछ हिस्सों में नये सिरे से डिवाइडर लगाने, कुछ छूटे स्थानों को बंद करने, एकता कॉलोनी के सामने वाले नाले पर सड़क को चौड़ा करने के लिये पुलिया बनाने की बात कही थी। उनके कार्यकाल में पालिका ने इसमें हीला हवाला किया और उनके जाने के बाद से ही पालिका पूर्व कलेक्टर के निर्देशों को बिसार चुकी दिख रही है।
0 भरत यादव के कार्यकाल में शालेय ऑटो में पाँच बच्चों से ज्यादा बैठाने पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाने के आदेश दिये गये थे। परिवहन विभाग और पुलिस ने इस मामले में कुछ हद तक सख्ती भी दिखायी पर भरत यादव के तबादले के बाद यह निर्देश भी ठण्डे बस्ते के हवाले कर दिया गया।
0 भरत यादव के कार्यकाल में नवीन जलावर्धन योजना के संबंध में भी एक ऐसी बैठक रखी गयी थी, जिसका सभी ने पुरजोर विरोध किया था। उस समय चुनी हुई नगर पालिका परिषद को सलाह देने के लिये एक समिति का गठन किया गया था, जिसे लोगों ने मजाक में विद्वत परिषद का नाम भी दिया था। उनके तबादले के बाद पालिका यह बताने की स्थिति में नहीं दिखी कि आखिर उस मामले में हुआ क्या?
0 भरत यादव के कार्यकाल में आवारा मवेशी, सूअर, कुत्तों और गधों को शहर से बाहर भेजने के निर्देश दर्जनों बार दिये जाने के बाद भी, पालिका ने उनके आदेशों की नाफरमानी, उनके रहते में ही की। उनके तबादले के बाद से ही वे निर्देश पता नहीं किस फाइल में दफन हो चुके हैं।
इसके बाद धनराजू एस. और गोपाल चंद्र डाड के कार्यकाल में इस तरह के निर्देश नहीं दिये गये जिनका उल्लेख किया जा सके।
0 इसके उपरांत प्रवीण सिंह अढ़ायच के कार्यकाल में सिवनी शहर में अतिक्रमण विरोधी अभियान दो चरणों में चलाया गया। सिवनी में पहली मर्तबा किसी बिल्डिंग को डायनामाईट से उड़ाया गया। इतना ही नहीं सिवनी में क्या देश के इतिहास में पहली बार प्रवीण सिंह अढ़ायच के कार्यकाल में ही समाचार पत्रों की प्रसार संख्या आदि पर सवालिया निशान लगाए गए और प्रशासनिक जांच में अनेक हैरत अंगेज बातें भी समाने आईं। इतना ही नहीं कोरोना की आहट के बाद भी कलेक्टर बंगले पर होली मिलन समारोह का आयोजन किया गया, जिसमें बड़ी तादाद में अधिकारियों कर्मचारियों ने शिरकत भी की।
यह बात नागरिक अब तक समझ नहीं पाये हैं कि जिला कलेक्टर रहते हुए दिये गये निर्देशों का पालन उनके तबादलों के बाद अधिकारियों के द्वारा क्यों नहीं किया जाता है। क्या इस तरह के निर्देश मौखिक रूप से दिये जाते हैं? अगर निर्देश कागज़ों पर दिये जाते हैं तो निश्चित तौर पर वे कागज़ आज भी कलेक्टर कार्यालय में जिंदा होंगे, इसके बावजूद भी इस तरह से जनहित के निर्देशों को हवा में अब तक के अधिकारी उड़ाने का साहस कैसे कर सकते हैं!

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